Hindi Article on Socio-Economic Status of Indian Villages

"तेज गति से बढ़ता भारत" और "खाली होते गांव" 

कुछ इस तरह से सोचते हैं, अगर हमारे देश में तो 100 नये स्मार्ट शहर बन कर तैयार हो जाए, और देश के 6 लाख गांव खाली हो कर उन स्मार्ट शहरों की तरफ जाने लगे, तो क्या होगा? तो होगा यह हमारे देश पन्नों पर तो तेजी से विकास करेगा, पर अंदर से खोखला होता जाएगा। यह बात इस तरह से इसलिए समझानी पड़ रही है, क्योंकि मैं भी शिक्षा व रोजगार के लिए अपने गांव को छोड़कर एक दूसरे शहर की आबादी व विकास का हिस्सा बन गया हूं।

हमारे देश की GDP 7% से ज्यादा तेजी से आगे बढ़ रही है, और हम ब्रिटेन और फ्रांस को पीछे छोड़ कर बहुत ही जल्दी पांचवी अर्थव्यवस्था भी बन जाए। इसमें कुछ भी गलत नहीं है कि हम आगे बढ़ रहे हैं, पर यह बात समझने की जरूरत है कि विकास का भौगोलिक संतुलन होना बहुत जरूरी है। ये कह सकते हैं कि रिसोर्सेज का समान रूप से डिस्ट्रीब्यूशन होना जरूरी है। हम अगर विकास का केंद्र सिर्फ और सिर्फ शहरों को बना लेते हैं, तो पिछड़े हुए कस्बे व गांव खाली हो कर उस और जाने लगेंगे। इसके परिणाम स्वरूप संसाधन व उपभोक्ताओं के बीच असंतुलन पैदा हो जायेगा।

तो समस्या हम सब समझ चुके है, देश में खाली होते गांव व पिछड़े क्षेत्र और इसकी वजह से शहरों का बिगड़ता हुआ संतुलन। इस समस्या का समाधान जानना ज्यादा जरूरी इसलिए भी है क्योकि समस्या सभी जानते हैं।

पहले हम इन कुछ आंकड़ों को देखते हैं और अपने शब्दों में समझने की कोशिश करते हैं - 

1. देश की लगभग दो 72 प्रतिशत आबादी गांवों और कस्बों में रहती है
2. देश में लगभग 6 लाख गांव हैं 
3. 45 हजार गांव 100 से कम आबादी वाले है
4. 46 हजार गांव में 100 से 200 लोग रहते हैं
5. 1.27 लाख गांव में 200 से 500 लोग रहते हैं

इस तरह मैं आपको समझा सकता हूं, लगभग 16% गांव में 200 से कम लोग हैं व लगभग 35% गांव में 500 से कम लोग है।

अब हम विस्थापन के आंकड़ों पर नजर डालते हैं - 
1. 46 करोड़ों लोग अलग-अलग कारणों से विस्थापित हुए
2. जिसमें से लगभग 10 करोड़ लोग नौकरी के लिए विस्थापित हुए
अगर इस डाटा को माइक्रो लेवल में समझा जाए, तो यह निकल कर आता है, इस प्रोसेस में बहुत से लोग गांव को छोड़कर शहरों में रोजगार के लिए विस्थापित हुए।विस्थापन के अन्य बड़े कारण शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का अभाव है। 

प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े - 
1. शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति आय 1.01 लाख सालाना
2. ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति आय 40 हजार सालाना, मतलब एक व्यक्ति 3300 रुपए प्रति माह कमा पाता है।

ऊपर दिए गए आंकड़ों से आप समझ सकते हैं, अगर मैं शहरी क्षेत्र में हूं तो मेरी आय लगभग 150% ज्यादा हो जाती है। समस्या का समाधान भी विस्थापन के इन्हीं तीन कारणों से निकाला जा सकता है।
1. रोजगार -  ग्रामीण क्षेत्रों की प्रति व्यक्ति आय को 1 लाख सालाना कैसे किया जाये
2. शिक्षा - बेसिक सरकारी शिक्षा के स्तर को प्राइवेट संस्थानों से कैसे मैच किया जाये
3. स्वास्थ्य - जिला अस्पताल व सरकारी अस्पतालों में सुधार व डॉक्टरों की उपलब्धता

स्थानीय रोजगार -  जब तक हम स्थानीय रोजगार के अवसर पैदा नहीं करेंगे, तब तक हमारे देश की 10 करोड़ की आबादी ऐसे ही रोजगार के लिए विस्थापित होती रहेगी। हम को यह समझना चाहिए, सबसे ज्यादा छोटे काम और मजदूरी करने वाले व्यक्ति गांव से दूर हो रहे है। अगर उसको अपने स्थान से 30-50 किलोमीटर की दायरे में 10-12 हजार का रोजगार मिल जाए, तो उतने ही रुपए के लिए शायद वह कभी शहर का रुख नही करेगा। अगर हम कुछ अधिक आय वर्ग के किसानों व व्यक्तियों को ग्रामीण प्रति व्यक्ति आय के दायरे से बाहर कर दें, तो हम पाएंगे कि आज बहुत से लोग ₹2000 प्रतिमाह से भी कम में गुजारा करने को मजबूर हैं।

सुझाव 1 - चीन में हर भौगोलिक क्षेत्र में प्रशिक्षित व अप्रशिक्षित श्रमिकों का रजिस्ट्रेशन किया जाता है, और उपलब्ध श्रमिक व उसकी योग्यता के आधार पर आर्थिक जोन डेवलप किए जाते हैं। व एक श्रमिकों अगर दूसरे क्षेत्र में विस्थापित होना चाहता है, तो एक सरकारी प्रक्रिया से गुजरना होता है। जिससे कि वह विस्थापन का सही कारण समझ पाते हैं। इसका फायदा यह है, कि व्यक्ति को घर के पास काम मिल जाता है और कंपनी को कम दाम पर अच्छे श्रमिक मिल जाते हैं। इस तरह से वह पूरा क्षेत्र एक आर्थिक उन्नति की ओर बढ़ता है। इस तरह के आर्थिक सुधार भारत में होने भी अति आवश्यक है।

सुझाव 2 - भारत के उत्तर व उत्तर-पूर्व के पहाड़ी राज्यों में, जहां पर खेती सीमित संसाधनों की वजह से कम होती जा रही है, ऐसे राज्यों के लिए हल्के खेती उपकरणों की उपलब्धता, वैज्ञानिक खेती की सलाह, ट्रैनिगं केन्द्र व विक्रय केंद्र की उपलब्धता बढ़ाने पर जोर देना होगा।

सुझाव 3 - वैसे तो सरकार इस दिशा में कार्य कर रही है, पर सभी राज्यों को ग्रामीण लोगों के शिक्षा व स्वास्थ्य पर होने वाले खर्चो को सुनिश्चित करना होगा। एक दूरगामी सोच के साथ काम करना होगा, ताकि उनका कमाया गया पैसा उनकी उन्नति में उपयोग हो सके।

स्थानीय स्तर पर अच्छी शिक्षा - जब भी हम ग्रामीण क्षेत्र की बेसिक शिक्षा की बात करते हैं, जोकि कक्षा 1 से 12 तक हम मान सकते हैं, जब छात्र की भविष्य की नींव तैयार होती है। तो सरकारी स्कूल की एक मात्र साधन दिखाई देते हैं। सरकारी स्कूल व पढ़ाने वाले अध्यापको मैं कोई भी कमी नहीं है, सभी शिक्षक एक विशिष्ट प्रतिभा की धनी व ट्रेनिंग प्राप्त होते हैं। फिर भी जब भी शिक्षा के स्तर की बात होती है, तो यह स्कूल पिछली पंक्ति में ही नजर आते हैं। यह समझना बहुत जरूरी है कि सरकारी स्कूलों का आज के दौर के हिसाब से कॉम्पिटेटिव होना बहुत जरूरी है। साथ में यह भी समझना होगा अगर आर्थिक सुधार से गांव के प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है, तो वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा भी सुनिश्चित करने हेतु बाहर भेजना शुरू कर देगें। उनके साथ खुद भी विस्थापित हो सकते है। तो हमारी समस्या वहीं की वहीं रह जाएगी। आर्थिक उन्नति के साथ-साथ  क्षेत्र में शैक्षिक स्तर को भी बढाना होगा।

यूरोप के कई देशों व अमेरिका की सरकारी शिक्षा तंत्र हम देख सकते हैं, और आज भी देर नहीं है अगर आज प्रयास शुरू किए जाते हैं, तो प्रथम परिणाम 5 सालों में व बदलाव 10 सालों में हमारे पास होगा।

स्वास्थ्य सुविधा - ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सुविधा को आप दो हिस्सों में देख सकते हैं, प्राथमिक उपचार व  दूसरा क्रिटिकल स्वास्थ्य सेवाएं। पब्लिक दवाई घर, बेसिक स्वास्थ्य सेवाएं(जिला अस्पताल व अन्य सरकारी अस्पताल), उच्च स्वास्थ्य सेवाएं(ऐम्स व मेडिकल कॉलेज)। हर 10 किलोमीटर की रेंज में कम से कम एक अच्छा सरकारी अस्पताल होना ही चाहिए, यहां पर ज्यादातर स्वास्थ्य सेवा व डॉक्टर उपलब्ध हो, और 60 किलोमीटर की रेंज में उच्चस्तरीय स्वास्थ्य संसाधन की जरूरत मुझे महसूस होती है। सरकार के पास अस्पताल के नाम पर बिल्डिंग है, पर डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्र में जाने को तैयार नहीं है। दूसरी समस्या आधुनिक उपकरणों का ना होना है, जोकि पब्लिक व प्रवेट सहयोग से उपलब्ध कराये जा सकते है।

आज समस्या यह है कि डॉक्टर की डिमांड ज्यादा है, और मेडिकल कॉलेज कम है। तो सभी डॉक्टर प्राइवेट अस्पताल व अपने क्लीनिक में काम करना ज्यादा पसंद करते हैं। देश में सेना के बजट के साथ साथ स्वास्थ्य बजट को भी बढ़ाना होगा, ताकि नए मेडिकल कॉलेज बने और डिमांड-सप्लाई के अंतर को कम किया जाए।

मुझे आशा है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की महत्वाकांक्षी योजना आयुष्मान भारत, प्राइवेट अस्पतालों के दरवाजे गरीबों के लिए खोलें देगी व सरकारी अस्पतालों के साथ निजी अस्पताल भी गांवो तक पहुच पायेगे।

अगर आने वाले 5 से 10 सालों में इस शहर व गांव के संतुलन को बनाने की दिशा में रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य पर बेसिक लेवल से काम किया जाए और निम्न वर्ग की जरूरतों को ध्यान में रखा जाए, तो गांव, जो शहरों में खोते जा कर रहे हैं, उनको हम बचा पायेंगें। जो ये असंतुलन की स्थिति शहरों के सामने बन रही है, जैसे आबादी, प्रदूषण, गंदगी इत्यादि, इनसे आज नहीं तो, कल में हम निजात पा सकेंगे।

यह विषय बहुत ही विस्तृत है। मैं जिस प्रदेश से आता हूं उसका नाम उत्तराखंड है। जो विस्थापन की मार को झेल रहा है, इसलिए मैं इन सभी साक्षयो व कारणों को बहुत अच्छे से समझता हूं।

आशा है कि यह लेख एक चेतना फैलाने में कामयाब होगा। अपने विचार जरूर शेयर करें और मुझसे जुड़ने के लिए इस ब्लॉग को फॉलो करें।

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3 comments:

  1. Yes I do agree, Employment, Education and Health Services is only option for rehabilitation for villages. Great job bhai

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  2. This comment has been removed by a blog administrator.

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