क्या आप एक eBook पाठक बनने वाले है?

आज से अगर सिर्फ दो दशक पीछे जाकर किताबों को पढनें के तरीको की कल्पना की जायें, तो भारत में सिर्फ पुस्तक और पुस्तकालय, अखबार और पत्रिकायें ही हर ओर नजर आती थी। Internet तब भी था, परन्तु हर किसी की पहुँच तक भी नही था। साइबर कैफे में जाकर भी हर दिन पढाई कर पाना भी कहाँ संभव हो पाता था। इन्टरनेट शहरों तक ही सीमित था, और शहरों में भी इसका ज्यादातर प्रयोग ऑफिसों में किया जाता था। कोई ऐसा विषय जिसकी किताबें ना मिल पाये, उसके लिए ही इन्टरनेट पर सामाग्री खोजनी पङती थी, तब सोशीयल मीडिया भी इतना प्रचलित नही था।


PDF फाईलों को खोलकर पढना, पढायी करने का तरीका समझा ही नही जाता है। फिर धीरे-धीरे eNews Paper ने सभी का ध्यान अपनी ओर खीचा और फिर eMagazine में भी लोगों की रूचि बढने लगी। eBooks को भारत में लोकप्रिय बनानें में Google Books का भी अच्छा योगदान रहा है, और फिर बढते डिजिटाईजेशन ने eBooks के मार्केट का स्वरूप ही बदल दिया।


भारत के सन्दर्भ में हमको eBook बाजार को शहरी एवं ग्रामीण व के-2  एवं उच्च शिक्षा में विभाजित करके समझना होगा। आज भारत में eBook का बाजार 7% के करीब है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पाठको की रुचि eBook की ओर बहुत ज्यादा नहीं है, या यह भी कहा जा सकता है कि किताबों को पहली प्राथमिकता दी जाती है। शहरों में भी eBook का प्रयोग के-2 तक की स्कूल शिक्षा में कम ही हो रहा है, ज्यादातर व्यवसायिक शिक्षा व उच्च शिक्षा या फिर रुचि विशेष की पुस्तकों को पढने के लिए eBook खरीदी जा रही हैं, या फिर Amazon Kindle जैसे प्रोडक्ट प्रयोग में आ रहे है, जहाँ आपको बहुत सी eBook पढने को मिल जाती है।


भारत की स्कूल शिक्षा प्रणाली में आज भी सभी क्षात्र-क्षात्राओं को पुस्तकों से ही पढाया जाता है। पिछले एक दशक में स्मार्ट क्लाॅस के क्षेत्र में अच्छी प्रगति हुई है, परन्तु स्मार्ट क्लाॅस में भी पुस्तकों से विषय लेकर ही presentation बनायी जाती है, जो आगे बच्चों को पढाया जाता है। 


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eBook से सम्बन्धित आकङे

1- 2020 में अमेरिका eBook का सबसे बङा बाजार है, यहाँ इस वर्ष लगभग USD$3000 Mn की eBooks खरीदी गई है।

2- 2020 में भारत मे eBook का बाजार लगभग USD$200 Mn है।

3- 2025 तक यह बाजार बढकर USD$300 Mn होने का अनुमान हैं।

4- भारत में अभी eBook बाजार की सालाना ग्रोथ 6% के करीब है।


भारत में eBook बाजार के ग्रोथ के मुख्य कारक

1- High Speed Internet Penetration ( अच्छी स्पीड के इन्टरनेट का प्रसार)  

आज विश्व में सबसे कम दामों पर 4G इन्टरनेट भारत में उपलब्ध हो रहा है, जिससे online content का प्रयोग पिछले 2-3 सालों में बहुत तेजी से बढा है। आज ग्रामीण व शहरी दोनों ही क्षेत्रों में इन्टरनेट के उपलब्ध होने से organic search भी काफी बढ गयी है। आज कोई भी नये विषय के बारे मे सीखना हो तो उपभोगता आसानी से Youtube, Google Search या फिर eBooks व PDF से जानकारी जुटा लेता है।


2020 में कोरोना महामारी के दौरान जब सारी पढाई Digital Platform (Online) से हो रही है, सभी स्कूल, काॅलेज, प्राइवेट इन्सटिट्यूट, कोचिंग इन्सटिट्यूट अपनी पाठ्य सामग्री को Digital बना रहे हैं, जैसे कि Video, PFD, Presentation, eBook में नोट्स को बदल कर विद्यायार्थी तक पहुँचा रहे हैं। इससे हम यह समझ सकते हैं कि हमारी Digital Learning की आदत भी बन रही है, जिससे की आने वाले समय में eBook पढने वालों की संख्या में बढोत्तरी हो सकती है।


2- Infrastructure(जरुरी संसाधनों की उपलब्धता)

जैसा कि हम सभी जानते हैं, eBook पढनें के लिए हमें कम्प्यूटर, लैपटोप, टेबलेट या स्मार्टफोन की जरूरत पङती है। पिछले कुछ वर्षों में स्मार्ट व टेबलेट लगभग सभी के घरों में पहुँच गया है, और आज के समय मे स्मार्टफोन का भी सामान्य साईज 6 इन्च के आस-पास है, यह किसी भी प्रकार की eBook को पढने के लिए उपयुक्त साधन है। सरकारों ने भी अलग-अलग योजनाओं के अन्तरगत बच्चों को पढाई के लिए लैपटोप व स्मार्टफोन प्रदान किये हैं। आज के समय में कम्प्यूटर,  लैपटोप व स्मार्टफोन पहले के मुकाबले कुछ सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं।


इन सभी  Hardware की उपलब्धता आने वाले समय में eBook की लोकप्रियता को ओर बढा सकती है। इसी श्रेणी में आने वाला Amazon Kindel तो eBooks का एक बहुत बङा संग्रह है, और यह काफी पसंद भी किया जा रहा है।


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3 - Increasing Online Content Eco-System( Online पाठ्य सामग्री का बढता हुआ बाजार)

आज हमारे देश में बहुत सी नयी कंपनियाँ online content devlopment के क्षेत्र में काम कर रही हैं, जिनको बहुत अच्छा फंड़ भी मिल रहा है, बहुत से नाम आपने TV Ads में देखे भी होंगे। साथ  ही IIT JEE, NEET, CAT, IAS और भी सभी बङी परीक्षाओं की कोचिंग कराने वाले संस्थान Online Content भी साथ में प्रदान कर रहे हैं, इससे इनकी पहुँच सुदूरवर्ती क्षेत्रों में भी बढी है। यहाँ पर  Notes  को eBooks में बदल कर सभी तक पहुँचाया जा रहा है।


अगर हम इन सभी सकारात्मक बाहरी कारकों को ध्यान से समझे तो आने वाले वर्षों में भारत भी eBook का एक बहुत बङा बाजार बन सकता है, और यह ग्रोथ हमारी सोच से भी कही ज्यादा हो सकती है। हमारे ब्लॉग के पाठक भी digital Content पसंद करने वालों की श्रेणी में आते है। उम्मीद है यह जानकारी आपको पसंद आयी हो, आप भी अपने विचार जरूर शेयर करें।


 अधर्म चाहे बलवान हो,

या धनवान,

या रावण जैसा सामर्थवान,


हर युग में आता है कोई राम सा,

सरलता जिसकी हो पहचान,

न किसी बात का हो अभिमान,

मर्यादाओं का हो जिनको ज्ञान।

Dusserha Greeting, Happy VijayaDashmi

हर युग में संग ही चलते हैं,

कभी धर्म प्रबल तो,

कभी अधर्म प्रबल।


अधर्म बलशाली जब हो जाता है,

तब हर युग में आ जाते हैं कोई बनकर राम,

कर देता है अन्त अधर्म का,

और बन जाता है वहाँ भगवान।


सभी पाठकों को दशहरा (विजयादशमी) की शुभकाभनाएँ।

Uttarakhand's Rich Cultural Festivals - उत्तराखण्ड के सांस्कृतिक व पारम्परिक कार्यक्रम


देवताओ की भूमि कही जाने वाला उत्तर भारत का हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड, एक ओर गंगा, यमुना सरस्वती का उद्गम स्थान है, दूसरी ओर अपनी अति प्राचीन सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। उत्तराखण्ड के पारम्परिक त्यौहारो में आस्था की झलक आपको स्पष्ट रूप से दिख सकती है। ज्यादातर पर्व में अलग-अलग तरह से देवी-देवताओं का पूजन भी किया जाता है और खुशियाँ भी मनायी जाती है।

हमने उत्तराखण्ड के मुख्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों को साल की शुरुवात से लेकर अन्त तक श्रेणी बध्द किया है। हम जनवरी से शुरुवात कर के साल के अन्त तक आने वाले सभी पर्वों को आसान भाषा में आपके सामने रखने की कोशिश करेंगे। फिर कुछ बङे सांस्कृतिक कार्यक्रम के बारे में हम आपको बतायेंगे जो अलग-अलग समय अंन्तराल में बहुत बङे स्तर पर मनाये जाते हैं। 

वैसे तो हमारे देश के सभी बङे त्यौहार यहाँ पर धूम-धाम से मनाये जाते हैं, परन्तु आज हम सिर्फ उन पर्वों की बात करेंगे जो या तो सिर्फ उत्तराखण्ड में मनाये जाते हैं या फिर जो बङे त्यौहार यहाँ पर लोकल परम्पराऔं के समावेश के साथ मनाये जाते हैं। 

शुरू करते हे माघ महीने( जनवरी अन्त ) में आने वाले पर्व बसंत पंचमी से।

बसंत पंचमी : 

उत्तर भारत के लगभग सभी राज्यों मे सरस्वती के लिए विख्यात इस पर्व का उत्तराखण्ड में अलग ही सांस्कृतिक महत्व है। विधिवत् तौर तरीकों से सरस्वती पूजा व बसंत आगमन का स्वागत तो किया ही जाता है, साथ ही साथ आज के दिन ही बच्चों को पहली बार पढाने लिखाने की परम्परा वर्षो पुरानी है। पाटी के ऊपर कुछ पौराणिक मंन्त्र लिखकर इसकी शुरुवात की जाती है। साथ ही आज के ही दिन बच्चे जो तीन वर्ष के हो चुके हैं उनका चूङाक्रम संस्कार (मुन्डन) किया जाता है, ओर इसके बाद उनकी शिक्षा आरंम्भ कर दी जाती है। आज ही के दिन बालिकाओं के पहली बार कान नाक छिदवाने की परंपरा है। ये कुछ विशेष बातें थी इस कार्यक्रम की जो आपको सिर्फ उत्तराखण्ड में ही देखने को मिलेगी।

Uttarakhand Basant Punchami, Uttarakhand Tradition


फूल देही(फूल फूल माई):

चैत्र महीने (मार्च मध्य में) की सक्रान्ति को मनाया जाने वाला ये लोक पर्व अपने आप मे बहुत ही आनोखा व आनन्दायक है। इस वक्त पहाङों में बुरांस, फ्यूली व अनेको प्रजाति के फूल अपनी सुन्दरता बिखेर रहे होते हैं। यह त्यौहार एक तरह से हिन्दू नव वर्ष के स्वागत का भी प्रतिक है, और सर्दियों के जाने के बाद सामान्य मानवी के उल्लास का दिन भी है। बच्चे सुबह उठकर सबसे पहले जंगलो में, खेतो में, टोकरी लेकर फूल बीनने जाते हैं, फिर सभी एक साथ जाकर गाँव के हर एक घर पर फूलो की वर्षा करते हुए कुछ लोक गीतों को गाते है, बदले में हर घर से उपहार स्वरूप कुछ ना कुछ दिया जाता है। पहले समय में जितने भाई-बहिन होते थे उतनी मुठ्ठी चावल देने की प्रथा रही है। इस तरह ये नन्हे बच्चे हर तरफ फूलों की खुशबू के संग खुशीयाँ भी बांट आते हैं। तो कैसा लगा आपको फूल देही का यह पर्व?


Phole Dehi Festival, Uttarakhand Tradition


होली :

फाल्गुन के महीने (मार्च में) बसंत ऋतु में मनाया जाने वाले यह पर्व वैसे तो पूरे भारत मे मनाया जाता है, परन्तु उत्तराखण्ड में होली का पर्व आज भी अपनी पुरानी परम्पराओं के अनुसार ही मनाया जाता है। यहाँ होली सात दिन पहले से शुरु होकर होलिका दहन तक चलती है। पहले दिन गाँव के लोग झंडी काटने जाते हैं ( झडे के लिए लम्बी लकङी), जोकी मैलू नाम के पेङ की होती है। झंङी आने के बाद उस कपङे का ध्वज लगाकर पूजा की जाती है। इसके बाद दूसरे दिन से बच्चों की टोली पूरे 6दिन उस झंङो को लेकर आस पास के गाँवों में होली खेलने जाती है, इसमें परम्परागत वाध्य यंत्र ढोल-दमाओ की थाप पर होली के लोक गीत गाते हुए बच्चे भ्रमण करते हैं। इस तरह से सभी गाँवों की होली एक के बाद एक गाँव में आती रहती है, और होली का अद्भुत माहौल रहता है। होलिका दहन के दिन उसी झंडी का दहन किया जाता है व अगले दिन उस राख का तिलक लगा कर होली खेली जाती है। शायद आपमें से बहुत लोगों को यह जानकारी पहली बार मिली होगी, और रोचक भी लगी हो।


बैसाखी (बिखोती के मेले) :

बैसाख महिने (अप्रैल मध्य में) बैसाखी का त्यौहार वैसे तो पंजाब में बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है, पर इस दिन का पुराने समय में उत्तराखंण्ड मे एक विषेश महत्व था। कुछ परम्परा अभी भी जीवित है व कुछ नें नया रूप ले लिया है। जैसा की हम जानते है गंगा नदी पहाङों से निकलने वाली अनेकों पवित्र नदियों के मिलने से बनी है। जिसमें दो मुख्य नदि अलकनन्दा व भागीरथी है, परन्तु पहाङों में सभी सहायक नदियों को बहुत पवित्र माना गया है, और बैसाखी के दिन गंगा स्नान का बहुत महत्तव माना जाता है। साथ ही पहले समय में जब बाजारों व सङको आभाव था, तब आज के दिन बङे मेलों का आयोजन होता था, जहाँ हर आवश्यक सामान का क्रय- विक्रय होता था। बहुत सी ऐसी वस्तुएं होती जो आज के दिन लेकर पूरे वर्ष के लिए रख दी जाती थी। खेत जोतने का सामान हो, भौटिया जनजाति द्वारा बनाये गये टोकरी व कंडे या उनके द्वारा लाये गये र्दुलभ मसाले, ये सब आज के दिन ही मिल पाता था। गंगं स्नान तो आज भी पहले की तरह ही होता है, परन्तु मेलों ने अपना रूप बदल लिया है।


हरेला :

श्रावण मास की संक्रांति के दिन उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मंडल में हरेला पर्व मनाया जाता है। वैसे तो हरेला साल में तीन बार( चैत्र नवरात्रि, शरद नवरात्रि व श्रावण) मनाया जाता है, परन्तु श्रावण महीने में मनाये जाने वाले पर्व का ज्यादा महत्व है। यह भी मान्यता है कि शिव व पार्वती के विवाह इस समय पर हुआ था। श्रावण संक्रांति से 10 दिन पहले पवित्र मिट्टी में घर मे हरियाली के लिये जौ, गेहूँ व अन्य अनाजों के बीज बोये जाते है, जिनको रोज सुबह व शाम की पूजा करके सींचा जाता है। नवे दिन इसकी निरायी करके 10वे दिन त्यौहार मनाने के लिए निकाल लेते है। यह पर्व  हरियाली व सौह्रार्द का त्यौहार है, जहाँ लोग मिल कर प्रकृति का धन्यवाद करते हैं। आज यह कार्यक्रम इतना प्रचलित हो गया कि पूरे राज्य में मनाया जाता है, और पूरे सावन के महीने वृक्षारोपण किया जाता है। हमारी संस्कृति में पुराने समय से ही प्रकृति के लिए विशेष स्थान रहा है। हरियाली की बालियों को पहले घर के प्रवेश द्वार पर लगाया जाता और फिर सभी के सिर पर आर्शीवाद स्वरूप रखा जाता है। यह खुशहाली व सुख का प्रतीक है।

Harela Festival, Uttarakhand Harela


नन्दा अष्टमी (पाती)

भाद्रपद महीने (सितम्बर माह) की अष्टमी के दिन उत्तराखण्ड के गढवाल मंडल में नन्दा अष्टमी ( जिसको पाती पर्व भी कहाँ जाता है) मनाया जाता है। यह मान्यता है कि गढवाल के चाँदपुर व श्रीगुरु पट्टी माँ नन्दा देवी का मायका है, इसके बारे में हम आगे विस्तार में बात करेगें जब नन्दा देवी राजजात के बारे में आपको बतायेंगे। नन्दा देवी कि पूजा स्वरूप यह पर्व हर वर्ष मनाया जाता है, इस समय फसलें पकने वाले होती है, उन सभी फसलों से देवी का प्रतिकात्मक स्वरूप बनाया जाता है और देवी मानव स्वरूप में अवतरित हो कर सभी को अपना आर्शीवाद देती है। शायद यह बातें कुछ पाठकों के लिए नयी हो सकती है, परन्तु यह पुराने समय से चली आ रही परम्पराओं का हिस्सा है। फोक वाध्य यंत्रो ढोल, दमाओ, भंकोर के स्वर पर सभी देवताओं की पूजा की जाती है व मायके आयी सभी बेटियों का विशेष सम्मान किया जाता है। 


दीपावली ( बग्वाल):

दीपावली को उत्तराखंण्ड मैं बग्वाल या बग्वाली भी कहाँ जाता है, दीवाली मनाने का यहाँ अपना अलग ही अंदाज है, आयिए जानते हैं, कार्तिक महीने की चर्तुदशी को छोटी दीवाली व अमावश्या को पूरे देश में दीपमाला मनायी जाती है, परन्तु दीपमाला के 11 दिन बाद एक ओर दीवाली मनायी जाती है जिसको इगास बग्वाल या भीरी बग्वाल या काण्सी बग्वाल कहते हैं। दीवाली की सुबह की शुरुवात यहाँ अपने जानवरों की पूजा करके होती है, अपनी गौशालाओं में जाकर सभी अपने पशुओं को टीका लगाकल धूप या अगरबत्ती  करते हैं और अपने हाथों से चारा खिलाते है, इसके बाद दीवाली पर अपने मायके आयी सभी लङकियों को दीवाली का क्लयो ( मिष्ठान) घर- घर जा कर दिया जाता है, जोकि घर पर ही बनाया जाता है। शहरों की तरह गाँव में सिर्फ पटाखे फोडकर दीवाली नहीं मनायी जाती है, रात में सभी लोग एक जगह पर इकठ्ठा होकर भैला(पारम्परिक कार्यक्रम) खेलते है। इस दौरान किया जाने वाला गेंदा नृत्य, ढोल दमाऊ पर फोक नृत्य बहुत ही आनन्दमय होता है, जोकि देर रात्रि तक चलता है। इसके बाद मार्गशीश एकादशी के दिन जो दीवाली मनायी जाती है, गढवाल क्षेत्र में भीरी बग्वाल या काण्सी बग्वाल के नाम से व कुमाऊ क्षेत्र में इगास बग्वाल के नाम से जाना जाता है। इस दिन सभी पशुओं की विशेष पूजा करके छोटे बछङो की पूछ पर राखी भी बान्धी जाती है, जो हमारे पशुओं के प्रति प्यार  को दर्शाता है। आपको अगर इस दीवाली को देखना है तो आप जरूर उत्तराखण्ड के किसी भी गाँव में दीवाली के अवसर पर जा सकते है। 

उत्तराखंण्ड में होने वाले मुख्य कार्यक्रम

नन्दा देवी राजजातः

नन्दा देवी राजजात हर 12 वर्षों में उत्तराखण्ड के गढवाल मंडल मे आयोजित होने वाली विश्व की सबसे लम्बी धार्मिक यात्रा है। यह पूरी यात्रा लगभग 20 पङाओं से, 20 दिन में सम्पन्न होती है, जिसमें लगभग 270 से 280 किलोमीटर पैदल चलना होता है। 

पौराणिक मान्यता यह है कि गढवाल के चाँदपुर व श्रीगुरु पट्टी माँ भगवती नन्दा का मायका है व बधांण क्षेत्र ससुराल है। एक बार किसी कारणवश माता को 12 सालों के लिये अपने मायके रुकना पङ गया था, और उसके बाद जब देवी नन्दा को उनके ससुराल विदा किया गया तो समस्त लोग भावुक हो गये। उसी परम्परा को मानते हुए आज भी हर 12 वर्ष में विधि विधान के साथ पूजा करके विदा किया जाता है। राजजात नौटी गाँव से शुरू हो कर, आखरी पङाव होमकुंड पर संपन्न होती है। उसी समय करुड व कुमाऊँ की राजजात का मिलन यात्रा के मध्य में होता, जहाँ से आगे की यात्रा एक साथ संपन्न होती है। यह इतना भव्य व अलौकिक आयोजन है, जिसकी जानकारी के लिए हम अलग से एक लेख जल्द ही पोस्ट करेंगे, जिसमें हम हर एक छोटी जानकारी आपसे साझा करेंगें।

राजजात जैसे आगे पङाओं मे बढती है इसमें अलग अलग गाँवों की छंतोली जुङती जाती है, अंत तक साथ मे चलती है। हर 12 वर्ष बाद एक चार सींग वाले भेङ(चौसिंग्या खाडू) का जन्म होता है, जो इस पूरी यात्रा में सबसे आगे चलता है, और यह माना जाता हे कि आखरी पूजा करने के बाद कैलाश तक की यात्रा चौसिंग्या खाङू स्वयं ही करता है। इस प्रकार नन्दप्रयाग घाट से होते हुए सभी यात्री वापस आ जाते है और यह विशाल पूजा नौटी गाँव में सम्पन्न हो जाती है।

Nanda Devi Rajjaat, Uttarakhand Culture and  Program



पाडंव नृत्य :

पाडंव नृत्य उत्तराखंण्ड के प्राचीनतम लोक नृत्यों में से एक है, जिसका आयोजन मुख्यतः सर्दियों के समय में अलग- अलग क्षेत्रों में होता रहता है। पांडव नृत्य महाभारत की कथा में धर्म की रक्षा करने वाले पांडवों पर आधारित है, जिसमें सभी पात्र जिनको देव रूप माना जाता है अपने पार्श्वओं पर ढोल दमों की विशेष थाप पर अवतरित होते हैं। आस पास के गाँवों के सभी लोग इस नृत्य को देखने के लिए उपस्थित होते हैं, जिसमे हमें इन सभी पात्रों के दर्शन भी प्राप्त होते हैं, और महाभारत अनेको अध्यायों का नृत्य रूप में अवलोकन भी होता है। आखिरी दिन खीर का भोग लगा कर सभी पांडव अपने अस्त्र फिर से उसी स्थान पर रख देते है, और यह पूजा संम्पन्न हो जाती है।

Pandav Nritya, Uttarakhand Foke Dance

हमें उम्मीद है उत्तराखंण्ड के इस त्यौहारों व देवीय कार्यक्रमो की जानकारी ने आपको रोमांचित किया होगा। आप हमारे ब्लाॅग को फोलो कर सकते हैं, ताकि समय समय पर आपको ऐसी जानकारी मिलती रहै। अपने कमेन्ट से हमें जरूर बतायें कि आपको यह पोस्ट कैसा लगा।









2021 कें Holidays की List

जैसा की साल  2021 अब आने ही वाला है, इसलिए आपकी जानकारी के लिए हम यह article अपडेट कर रहें हैं, ताकि आपको साल 2021 में आने वाले सभी Festival और Holidays की सही जानकारी मिल सके, साथ ही आप यह भी जान पायेंगे की 2021 मे stock exchange कब close रहेगा।

2021 में आने वाले सभी Holidays(अवकाशो) की जानकारी के लिए यहाँ click करं।

साथ ही आप इस लिंक से नये साल की शुभकामनाओ के संन्देश भी copy करके अपने दोस्तो व परिवार के सदस्यो को भैज सकते है।

2020

हमारा देश त्यौहारो का देश कहलाता है। जिसकी एक बङी वजह हैं हमारे यहाँ विविध संस्कृतियो का ऐसा समावेश है कि एक के बाद एक पर्व आते ही रहते है। नवरात्रि की शुरुवात से तो समझो हर सप्ताह अलग अलग क्षत्रो में अपनी मान्यता के हिस्साब से हम पर्व मनाते है और सरकारी अवकास भी मिलता है। 2020 में दशहरे के बाद आने वाले सभी त्यौहार इस प्रकार है

Diwali Dussera Images

अक्टूबर माह के मुख्य पर्व

* 25 रविवार, दशहरा (शरद नवरात्रि का समापन)

* 26 सोमवार, दुर्गा विर्सजन 


नवम्बर माह के मुख्य पर्व

* 4 बुधवार, करवा चौथ

* 13 शुक्रवार, धनतेरश

* 14 शनिवार, दिवाली/दिपमाला

*15 रविवार, गोवर्धन पूजा

* 16 सोमवार, भाई दूज

* 20 शुक्रवार, छट पूजा

* 24 मंगलवार, गुरु तेग बहादुर जयंती

* 30 सोमवार, गुरु पूर्णिमा ( गुरू नानक जयंती)


दिसम्बर माह के मुख्य पर्व

*25 दिसम्बर, क्रिसमस डे



Women Empowerment Poem on Navratri - नवरात्रि में नारी शक्ति तुम्हे प्रणाम

 हे नारी,

          तुम नौ दुर्गा हो।

तुम नौ रूपों की स्वामीनी हो।

आदि शक्ति हो,

                    अष्ट शक्ति हो।

इस दुनिया की संचालक हो।

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क्यों सोचती हो कुछ मुश्किल है,

                     क्यो सोचती हो ये ना कर पाओगी।

किस बात से तुम यूं डरती हो,

                      क्यो कुंठाओ में फस बैठी हो।


तुम कर्म योगीनी,

                      सहनशील हो,

तुम हर संकट का हल कर सकती हो।

                       धैर्य तुम्हारा बङा शस्त्र है,

हर मुश्किल से तुम लङ सकती हो।


करुणा का तुम सागर हो,

                        हर दिल मे घर कर जाती हो।

जब होती तुम क्रोधित हो,

                        हर पापी में डर से कम्पन्न होती है।


विश्वास करो खुद की शक्ति पर,

                        हर शक्ति कि स्रौत हो तुम।

तुम अबला कैसे हो सकती हो,

                       जब सबको तुमनें ही संभाला है।


विश्वास करो, हर रूप में तुम,

                        इस दुनिया को चलाती हो।

माता, बेटी या हो पत्नी,

                        हर रूप मे तुम माँ दुर्गा का रूप कहलाती हो।


ये श्रृष्टी है तुम से,

                       प्राणदायनी ऊर्जा तुमसे,

हर जगह वास तुम्हारा मंगलकारी है।

                       करते हैं हम नमन तुम्हे,

तुम हर रूप मे हम सबकी पालनहारी हो।



Hindi Poem on Disaster on Mountains Due to Construction Work - पहाड़ो पर हो रहे निर्माण व उसके परिणाम

इन पहाङी वादियो में धूल सी क्यों छा गयी,

यह विकास की आंधी कैसी आयी है।

दरक रहे हैं न जाने कितने हिस्से मेरे पहाङ के,

ये टूटते पत्थर, फिसलती मिट्टी, न जाने कब कहर बन जायेगी।


प्रकृति को प्रकृति ही जुदा करने की

किसने यह तरकीब बनायी है।

सङकों के माया जाल में,

हम बन बैठे अनजान हैं।


ये कल-कल करती नदियाँ, 

हर पल गिरते झरने,

और पुराने बजारो की रौनक,

कहीं गुम होते जा रहे हैं।

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वो सूरज का ढलना, पहाङो में छिपना,

धूल की चादर में सिमटता जा रहा है।

चिङियों का चहकना, नदियों का कल-कल,

मशीनी आवाजों से दबता जा रहा है।


फिर आती है वर्षा, करती है तांडव,

मंजर तबाही का हमको है दिखाती।

रुलाता है हमको हर छोटा नुकसान अपना,

पर पेङों का कटना, बेघर जानवरों का होना,

क्यों नहीं हमको हे रुलाता।


जिन्दगी जीने का मायना बदला है हमने,

हर जगह मोल- भाव करते हैं यूँ ही।

विकास की आँधी चली कुछ इस कदर है,

भूल जाते हैं हम, हमको इसी प्रकृति ने है बनाया।


संजोयेंगे हम तो, प्यार करती रहेगी,

बिखेरेंगे हम तो, सन्तुलन वो खुद है बनाती।

इंतजार क्यों उस दिन का है करना,

जब बनना पड जाये मूकदर्शक हमको।

नेचर पर कविताएँ

बचपन की यादों पर कविताएँ