New Hindi Poem, Shayari and Hindi Article on Trending Topics
New Hindi Poem, Shayari and Hindi Article on Trending Topics
एक वक्त तो आना था,
जब कभी न कभी,
हमको कुछ चीजों से दूर हो जाना था।
मैं अलविदा कहता हूँ,
उन यादों को
जो मुझे कल में बान्धें रखती है।
मैं अलविदा कहता हूँ,
उन बातों को,
जिसमें बस मैं ही मैं रहता हूँ।
मैं अलविदा कहता हूँ,
रिस्तों की उन जंजीरों को,
जो भीष्म बन जाने को कहती हैं।
मैं अलविदा कहता हूँ,
उन विचारों को,
जो मुझे हर वक्त मौन बनाये रखती हैं।
एक वक्त तो आना था,
जब कुछ बातों पर
प्रश्न चिह्न लग जाना था।
मैं अलविदा कहता हूँ,
उन अनसुलझे सवालों को,
जिनको मन को ही सुलझाना है।
मैं अलविदा कहता हूँ,
हर रोज की तू-तू, मैं-मैं को,
जिसका अंजाम रुलाना होता है।
मैं अलविदा कहता हूँ,
उन दोस्तों को
जिनका साथ बस मतलब भर का होता है।
मैं अलविदा कहता हूँ,
उन आदतों को
जिनका मैं हूँ गुलाम बना।
मैं अलविदा कहता हूँ,
उस सुकून को
जो किसी के दर्द से पैदा होता है।
एक वक्त तो आना था
जब कुछ बातों से
हमको ऊब जाना था।
मैं अलविदा कहता हूँ,
हर उस लोक लुभावन चीजों को
जिसने कल ही गुम हो जाना है।
मैं अलविदा कहता हूँ,
उस दौङ को
जिसमें मुझे अकेले आगे निकल जाना है।
मैं अलविदा कहता हूँ,
उन सारी बातों को
जिनको पूरा करते करते
मैं खुद ही कहीं पीछे रह जाता हूँ।
जीने की जो परिभाषा है,
उसे ही भूल सा जाता हूँ।
Joe Biden defeats the Donald Trump in US president election. He will be the 46th President of the United State of America.
Current Status is Election Result :
Joe Biden (Democratic Party) - 290
Donald Trump (Republican Party) - 214
It is a very close contest between Joe Biden and Donald Trump, both condidate are very confidant to their win.
Joe Biden received highest vote then any President condidate in US histroy. Officially he has surpassed the 2008 Barack Obama's number.
Counting resume Joe Biden cross the mark of 270+ (won), now it is confirmed that he won the presidency election of United State of Amercia.
आज से अगर सिर्फ दो दशक पीछे जाकर किताबों को पढनें के तरीको की कल्पना की जायें, तो भारत में सिर्फ पुस्तक और पुस्तकालय, अखबार और पत्रिकायें ही हर ओर नजर आती थी। Internet तब भी था, परन्तु हर किसी की पहुँच तक भी नही था। साइबर कैफे में जाकर भी हर दिन पढाई कर पाना भी कहाँ संभव हो पाता था। इन्टरनेट शहरों तक ही सीमित था, और शहरों में भी इसका ज्यादातर प्रयोग ऑफिसों में किया जाता था। कोई ऐसा विषय जिसकी किताबें ना मिल पाये, उसके लिए ही इन्टरनेट पर सामाग्री खोजनी पङती थी, तब सोशीयल मीडिया भी इतना प्रचलित नही था।
PDF फाईलों को खोलकर पढना, पढायी करने का तरीका समझा ही नही जाता है। फिर धीरे-धीरे eNews Paper ने सभी का ध्यान अपनी ओर खीचा और फिर eMagazine में भी लोगों की रूचि बढने लगी। eBooks को भारत में लोकप्रिय बनानें में Google Books का भी अच्छा योगदान रहा है, और फिर बढते डिजिटाईजेशन ने eBooks के मार्केट का स्वरूप ही बदल दिया।
भारत के सन्दर्भ में हमको eBook बाजार को शहरी एवं ग्रामीण व के-2 एवं उच्च शिक्षा में विभाजित करके समझना होगा। आज भारत में eBook का बाजार 7% के करीब है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पाठको की रुचि eBook की ओर बहुत ज्यादा नहीं है, या यह भी कहा जा सकता है कि किताबों को पहली प्राथमिकता दी जाती है। शहरों में भी eBook का प्रयोग के-2 तक की स्कूल शिक्षा में कम ही हो रहा है, ज्यादातर व्यवसायिक शिक्षा व उच्च शिक्षा या फिर रुचि विशेष की पुस्तकों को पढने के लिए eBook खरीदी जा रही हैं, या फिर Amazon Kindle जैसे प्रोडक्ट प्रयोग में आ रहे है, जहाँ आपको बहुत सी eBook पढने को मिल जाती है।
भारत की स्कूल शिक्षा प्रणाली में आज भी सभी क्षात्र-क्षात्राओं को पुस्तकों से ही पढाया जाता है। पिछले एक दशक में स्मार्ट क्लाॅस के क्षेत्र में अच्छी प्रगति हुई है, परन्तु स्मार्ट क्लाॅस में भी पुस्तकों से विषय लेकर ही presentation बनायी जाती है, जो आगे बच्चों को पढाया जाता है।
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1- 2020 में अमेरिका eBook का सबसे बङा बाजार है, यहाँ इस वर्ष लगभग USD$3000 Mn की eBooks खरीदी गई है।
2- 2020 में भारत मे eBook का बाजार लगभग USD$200 Mn है।
3- 2025 तक यह बाजार बढकर USD$300 Mn होने का अनुमान हैं।
4- भारत में अभी eBook बाजार की सालाना ग्रोथ 6% के करीब है।
आज विश्व में सबसे कम दामों पर 4G इन्टरनेट भारत में उपलब्ध हो रहा है, जिससे online content का प्रयोग पिछले 2-3 सालों में बहुत तेजी से बढा है। आज ग्रामीण व शहरी दोनों ही क्षेत्रों में इन्टरनेट के उपलब्ध होने से organic search भी काफी बढ गयी है। आज कोई भी नये विषय के बारे मे सीखना हो तो उपभोगता आसानी से Youtube, Google Search या फिर eBooks व PDF से जानकारी जुटा लेता है।
2020 में कोरोना महामारी के दौरान जब सारी पढाई Digital Platform (Online) से हो रही है, सभी स्कूल, काॅलेज, प्राइवेट इन्सटिट्यूट, कोचिंग इन्सटिट्यूट अपनी पाठ्य सामग्री को Digital बना रहे हैं, जैसे कि Video, PFD, Presentation, eBook में नोट्स को बदल कर विद्यायार्थी तक पहुँचा रहे हैं। इससे हम यह समझ सकते हैं कि हमारी Digital Learning की आदत भी बन रही है, जिससे की आने वाले समय में eBook पढने वालों की संख्या में बढोत्तरी हो सकती है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं, eBook पढनें के लिए हमें कम्प्यूटर, लैपटोप, टेबलेट या स्मार्टफोन की जरूरत पङती है। पिछले कुछ वर्षों में स्मार्ट व टेबलेट लगभग सभी के घरों में पहुँच गया है, और आज के समय मे स्मार्टफोन का भी सामान्य साईज 6 इन्च के आस-पास है, यह किसी भी प्रकार की eBook को पढने के लिए उपयुक्त साधन है। सरकारों ने भी अलग-अलग योजनाओं के अन्तरगत बच्चों को पढाई के लिए लैपटोप व स्मार्टफोन प्रदान किये हैं। आज के समय में कम्प्यूटर, लैपटोप व स्मार्टफोन पहले के मुकाबले कुछ सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं।
इन सभी Hardware की उपलब्धता आने वाले समय में eBook की लोकप्रियता को ओर बढा सकती है। इसी श्रेणी में आने वाला Amazon Kindel तो eBooks का एक बहुत बङा संग्रह है, और यह काफी पसंद भी किया जा रहा है।
आप भी यह प्रोडक्ट इस लिंक पर Click करके खरीद सकते हैं।
आज हमारे देश में बहुत सी नयी कंपनियाँ online content devlopment के क्षेत्र में काम कर रही हैं, जिनको बहुत अच्छा फंड़ भी मिल रहा है, बहुत से नाम आपने TV Ads में देखे भी होंगे। साथ ही IIT JEE, NEET, CAT, IAS और भी सभी बङी परीक्षाओं की कोचिंग कराने वाले संस्थान Online Content भी साथ में प्रदान कर रहे हैं, इससे इनकी पहुँच सुदूरवर्ती क्षेत्रों में भी बढी है। यहाँ पर Notes को eBooks में बदल कर सभी तक पहुँचाया जा रहा है।
अगर हम इन सभी सकारात्मक बाहरी कारकों को ध्यान से समझे तो आने वाले वर्षों में भारत भी eBook का एक बहुत बङा बाजार बन सकता है, और यह ग्रोथ हमारी सोच से भी कही ज्यादा हो सकती है। हमारे ब्लॉग के पाठक भी digital Content पसंद करने वालों की श्रेणी में आते है। उम्मीद है यह जानकारी आपको पसंद आयी हो, आप भी अपने विचार जरूर शेयर करें।
अधर्म चाहे बलवान हो,
या धनवान,
या रावण जैसा सामर्थवान,
हर युग में आता है कोई राम सा,
सरलता जिसकी हो पहचान,
न किसी बात का हो अभिमान,
मर्यादाओं का हो जिनको ज्ञान।
हर युग में संग ही चलते हैं,
कभी धर्म प्रबल तो,
कभी अधर्म प्रबल।
अधर्म बलशाली जब हो जाता है,
तब हर युग में आ जाते हैं कोई बनकर राम,
कर देता है अन्त अधर्म का,
और बन जाता है वहाँ भगवान।
सभी पाठकों को दशहरा (विजयादशमी) की शुभकाभनाएँ।
उत्तर भारत के लगभग सभी राज्यों मे सरस्वती के लिए विख्यात इस पर्व का उत्तराखण्ड में अलग ही सांस्कृतिक महत्व है। विधिवत् तौर तरीकों से सरस्वती पूजा व बसंत आगमन का स्वागत तो किया ही जाता है, साथ ही साथ आज के दिन ही बच्चों को पहली बार पढाने लिखाने की परम्परा वर्षो पुरानी है। पाटी के ऊपर कुछ पौराणिक मंन्त्र लिखकर इसकी शुरुवात की जाती है। साथ ही आज के ही दिन बच्चे जो तीन वर्ष के हो चुके हैं उनका चूङाक्रम संस्कार (मुन्डन) किया जाता है, ओर इसके बाद उनकी शिक्षा आरंम्भ कर दी जाती है। आज ही के दिन बालिकाओं के पहली बार कान नाक छिदवाने की परंपरा है। ये कुछ विशेष बातें थी इस कार्यक्रम की जो आपको सिर्फ उत्तराखण्ड में ही देखने को मिलेगी।
चैत्र महीने (मार्च मध्य में) की सक्रान्ति को मनाया जाने वाला ये लोक पर्व अपने आप मे बहुत ही आनोखा व आनन्दायक है। इस वक्त पहाङों में बुरांस, फ्यूली व अनेको प्रजाति के फूल अपनी सुन्दरता बिखेर रहे होते हैं। यह त्यौहार एक तरह से हिन्दू नव वर्ष के स्वागत का भी प्रतिक है, और सर्दियों के जाने के बाद सामान्य मानवी के उल्लास का दिन भी है। बच्चे सुबह उठकर सबसे पहले जंगलो में, खेतो में, टोकरी लेकर फूल बीनने जाते हैं, फिर सभी एक साथ जाकर गाँव के हर एक घर पर फूलो की वर्षा करते हुए कुछ लोक गीतों को गाते है, बदले में हर घर से उपहार स्वरूप कुछ ना कुछ दिया जाता है। पहले समय में जितने भाई-बहिन होते थे उतनी मुठ्ठी चावल देने की प्रथा रही है। इस तरह ये नन्हे बच्चे हर तरफ फूलों की खुशबू के संग खुशीयाँ भी बांट आते हैं। तो कैसा लगा आपको फूल देही का यह पर्व?
फाल्गुन के महीने (मार्च में) बसंत ऋतु में मनाया जाने वाले यह पर्व वैसे तो पूरे भारत मे मनाया जाता है, परन्तु उत्तराखण्ड में होली का पर्व आज भी अपनी पुरानी परम्पराओं के अनुसार ही मनाया जाता है। यहाँ होली सात दिन पहले से शुरु होकर होलिका दहन तक चलती है। पहले दिन गाँव के लोग झंडी काटने जाते हैं ( झडे के लिए लम्बी लकङी), जोकी मैलू नाम के पेङ की होती है। झंङी आने के बाद उस कपङे का ध्वज लगाकर पूजा की जाती है। इसके बाद दूसरे दिन से बच्चों की टोली पूरे 6दिन उस झंङो को लेकर आस पास के गाँवों में होली खेलने जाती है, इसमें परम्परागत वाध्य यंत्र ढोल-दमाओ की थाप पर होली के लोक गीत गाते हुए बच्चे भ्रमण करते हैं। इस तरह से सभी गाँवों की होली एक के बाद एक गाँव में आती रहती है, और होली का अद्भुत माहौल रहता है। होलिका दहन के दिन उसी झंडी का दहन किया जाता है व अगले दिन उस राख का तिलक लगा कर होली खेली जाती है। शायद आपमें से बहुत लोगों को यह जानकारी पहली बार मिली होगी, और रोचक भी लगी हो।
बैसाख महिने (अप्रैल मध्य में) बैसाखी का त्यौहार वैसे तो पंजाब में बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है, पर इस दिन का पुराने समय में उत्तराखंण्ड मे एक विषेश महत्व था। कुछ परम्परा अभी भी जीवित है व कुछ नें नया रूप ले लिया है। जैसा की हम जानते है गंगा नदी पहाङों से निकलने वाली अनेकों पवित्र नदियों के मिलने से बनी है। जिसमें दो मुख्य नदि अलकनन्दा व भागीरथी है, परन्तु पहाङों में सभी सहायक नदियों को बहुत पवित्र माना गया है, और बैसाखी के दिन गंगा स्नान का बहुत महत्तव माना जाता है। साथ ही पहले समय में जब बाजारों व सङको आभाव था, तब आज के दिन बङे मेलों का आयोजन होता था, जहाँ हर आवश्यक सामान का क्रय- विक्रय होता था। बहुत सी ऐसी वस्तुएं होती जो आज के दिन लेकर पूरे वर्ष के लिए रख दी जाती थी। खेत जोतने का सामान हो, भौटिया जनजाति द्वारा बनाये गये टोकरी व कंडे या उनके द्वारा लाये गये र्दुलभ मसाले, ये सब आज के दिन ही मिल पाता था। गंगं स्नान तो आज भी पहले की तरह ही होता है, परन्तु मेलों ने अपना रूप बदल लिया है।
भाद्रपद महीने (सितम्बर माह) की अष्टमी के दिन उत्तराखण्ड के गढवाल मंडल में नन्दा अष्टमी ( जिसको पाती पर्व भी कहाँ जाता है) मनाया जाता है। यह मान्यता है कि गढवाल के चाँदपुर व श्रीगुरु पट्टी माँ नन्दा देवी का मायका है, इसके बारे में हम आगे विस्तार में बात करेगें जब नन्दा देवी राजजात के बारे में आपको बतायेंगे। नन्दा देवी कि पूजा स्वरूप यह पर्व हर वर्ष मनाया जाता है, इस समय फसलें पकने वाले होती है, उन सभी फसलों से देवी का प्रतिकात्मक स्वरूप बनाया जाता है और देवी मानव स्वरूप में अवतरित हो कर सभी को अपना आर्शीवाद देती है। शायद यह बातें कुछ पाठकों के लिए नयी हो सकती है, परन्तु यह पुराने समय से चली आ रही परम्पराओं का हिस्सा है। फोक वाध्य यंत्रो ढोल, दमाओ, भंकोर के स्वर पर सभी देवताओं की पूजा की जाती है व मायके आयी सभी बेटियों का विशेष सम्मान किया जाता है।
पाडंव नृत्य उत्तराखंण्ड के प्राचीनतम लोक नृत्यों में से एक है, जिसका आयोजन मुख्यतः सर्दियों के समय में अलग- अलग क्षेत्रों में होता रहता है। पांडव नृत्य महाभारत की कथा में धर्म की रक्षा करने वाले पांडवों पर आधारित है, जिसमें सभी पात्र जिनको देव रूप माना जाता है अपने पार्श्वओं पर ढोल दमों की विशेष थाप पर अवतरित होते हैं। आस पास के गाँवों के सभी लोग इस नृत्य को देखने के लिए उपस्थित होते हैं, जिसमे हमें इन सभी पात्रों के दर्शन भी प्राप्त होते हैं, और महाभारत अनेको अध्यायों का नृत्य रूप में अवलोकन भी होता है। आखिरी दिन खीर का भोग लगा कर सभी पांडव अपने अस्त्र फिर से उसी स्थान पर रख देते है, और यह पूजा संम्पन्न हो जाती है।
हमें उम्मीद है उत्तराखंण्ड के इस त्यौहारों व देवीय कार्यक्रमो की जानकारी ने आपको रोमांचित किया होगा। आप हमारे ब्लाॅग को फोलो कर सकते हैं, ताकि समय समय पर आपको ऐसी जानकारी मिलती रहै। अपने कमेन्ट से हमें जरूर बतायें कि आपको यह पोस्ट कैसा लगा।
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