Hindi Poem on Disaster on Mountains Due to Construction Work - पहाड़ो पर हो रहे निर्माण व उसके परिणाम

इन पहाङी वादियो में धूल सी क्यों छा गयी,

यह विकास की आंधी कैसी आयी है।

दरक रहे हैं न जाने कितने हिस्से मेरे पहाङ के,

ये टूटते पत्थर, फिसलती मिट्टी, न जाने कब कहर बन जायेगी।


प्रकृति को प्रकृति ही जुदा करने की

किसने यह तरकीब बनायी है।

सङकों के माया जाल में,

हम बन बैठे अनजान हैं।


ये कल-कल करती नदियाँ, 

हर पल गिरते झरने,

और पुराने बजारो की रौनक,

कहीं गुम होते जा रहे हैं।

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वो सूरज का ढलना, पहाङो में छिपना,

धूल की चादर में सिमटता जा रहा है।

चिङियों का चहकना, नदियों का कल-कल,

मशीनी आवाजों से दबता जा रहा है।


फिर आती है वर्षा, करती है तांडव,

मंजर तबाही का हमको है दिखाती।

रुलाता है हमको हर छोटा नुकसान अपना,

पर पेङों का कटना, बेघर जानवरों का होना,

क्यों नहीं हमको हे रुलाता।


जिन्दगी जीने का मायना बदला है हमने,

हर जगह मोल- भाव करते हैं यूँ ही।

विकास की आँधी चली कुछ इस कदर है,

भूल जाते हैं हम, हमको इसी प्रकृति ने है बनाया।


संजोयेंगे हम तो, प्यार करती रहेगी,

बिखेरेंगे हम तो, सन्तुलन वो खुद है बनाती।

इंतजार क्यों उस दिन का है करना,

जब बनना पड जाये मूकदर्शक हमको।

यह हिन्दी कविता Social Issue पर लिखी गी है, आतंकवाद सिर्फ एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या ही नही है, यह एक सामाजिक समस्या भी है।ऐसा ही दर्द यह कविता भी बया करती है।

सिमट रहा मॉ के आचल में,

कुछ डरा सा इस जन्नत का लाडला।

डर मौत से किसको यहाँ,

डरते है इस बात से, कल होगा क्या यहाँ।

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कौन अपना है और कौन पराया,

समझ मैं कैसे बनाऊ।

क्या सच है, क्या झूठ,

ये कैसे खुद को समझाऊ।


बिक रहा है, डर बाजार में क्यो,

कौन कर रहा हे व्यापार इसका।

मेरा मजहब, मेरा देश या मेरा जमीर,

क्या मेरी असली पहचान है।


खो गया है एक धूल में,

खर्च हो रहा है फिजूल में।

एक साया काला आ गया,

आतंक हर घर में छा गया।

बचपन जैसे खो गया,

बुढापा बन गया अभिशाप है।


कौन आया वादियों में,

लेकर यह हथियार है।

बह रहा है खून मेरा,

इस तरफ हो या उस तरफ।


छिन गयी पहचान मेरी,

बन रही शमशान हूँ।

छा गया ये काला साया,

मैं अब भी हैरान हूँ।


आये कोई बनके ज्वाला,

चीर दे अन्धकार को।

लग गया जो आतंकी साया,

उसको दो हिस्सो में बाट दे।


आने लगे फिर रोशनी

प्यार और विश्वास की।

देख लू इन वादियो को फिर से,

जैसा देखा था कभी।


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