Women Empowerment Poem on Navratri - नवरात्रि में नारी शक्ति तुम्हे प्रणाम

 हे नारी,

          तुम नौ दुर्गा हो।

तुम नौ रूपों की स्वामीनी हो।

आदि शक्ति हो,

                    अष्ट शक्ति हो।

इस दुनिया की संचालक हो।

Navratri Image, Poem on Navratri, Hindi Poem

क्यों सोचती हो कुछ मुश्किल है,

                     क्यो सोचती हो ये ना कर पाओगी।

किस बात से तुम यूं डरती हो,

                      क्यो कुंठाओ में फस बैठी हो।


तुम कर्म योगीनी,

                      सहनशील हो,

तुम हर संकट का हल कर सकती हो।

                       धैर्य तुम्हारा बङा शस्त्र है,

हर मुश्किल से तुम लङ सकती हो।


करुणा का तुम सागर हो,

                        हर दिल मे घर कर जाती हो।

जब होती तुम क्रोधित हो,

                        हर पापी में डर से कम्पन्न होती है।


विश्वास करो खुद की शक्ति पर,

                        हर शक्ति कि स्रौत हो तुम।

तुम अबला कैसे हो सकती हो,

                       जब सबको तुमनें ही संभाला है।


विश्वास करो, हर रूप में तुम,

                        इस दुनिया को चलाती हो।

माता, बेटी या हो पत्नी,

                        हर रूप मे तुम माँ दुर्गा का रूप कहलाती हो।


ये श्रृष्टी है तुम से,

                       प्राणदायनी ऊर्जा तुमसे,

हर जगह वास तुम्हारा मंगलकारी है।

                       करते हैं हम नमन तुम्हे,

तुम हर रूप मे हम सबकी पालनहारी हो।



Hindi Poem on Disaster on Mountains Due to Construction Work - पहाड़ो पर हो रहे निर्माण व उसके परिणाम

इन पहाङी वादियो में धूल सी क्यों छा गयी,

यह विकास की आंधी कैसी आयी है।

दरक रहे हैं न जाने कितने हिस्से मेरे पहाङ के,

ये टूटते पत्थर, फिसलती मिट्टी, न जाने कब कहर बन जायेगी।


प्रकृति को प्रकृति ही जुदा करने की

किसने यह तरकीब बनायी है।

सङकों के माया जाल में,

हम बन बैठे अनजान हैं।


ये कल-कल करती नदियाँ, 

हर पल गिरते झरने,

और पुराने बजारो की रौनक,

कहीं गुम होते जा रहे हैं।

Hindi Poem On Nature, Best Poem in Hindi, Poem Image

वो सूरज का ढलना, पहाङो में छिपना,

धूल की चादर में सिमटता जा रहा है।

चिङियों का चहकना, नदियों का कल-कल,

मशीनी आवाजों से दबता जा रहा है।


फिर आती है वर्षा, करती है तांडव,

मंजर तबाही का हमको है दिखाती।

रुलाता है हमको हर छोटा नुकसान अपना,

पर पेङों का कटना, बेघर जानवरों का होना,

क्यों नहीं हमको हे रुलाता।


जिन्दगी जीने का मायना बदला है हमने,

हर जगह मोल- भाव करते हैं यूँ ही।

विकास की आँधी चली कुछ इस कदर है,

भूल जाते हैं हम, हमको इसी प्रकृति ने है बनाया।


संजोयेंगे हम तो, प्यार करती रहेगी,

बिखेरेंगे हम तो, सन्तुलन वो खुद है बनाती।

इंतजार क्यों उस दिन का है करना,

जब बनना पड जाये मूकदर्शक हमको।

नेचर पर कविताएँ

बचपन की यादों पर कविताएँ