Hindi Kavita on Life of Farmer - किसान के जीवन की परेशानी, बदहाली, लाचारी, मेहनत ओर उम्मीदों पर कविता

आजकल हमारे देश में किसान आन्दोलन कर रहे हैं, और किसानों पर सभी राजनैतिक दल वर्षों से राजनीति करते आये हैं, पर शायद ही कोई उनके जीवन के बारे में सोचता होगा। किसान परिवार से नाता होने की वजह से किसानों के जीवन पर एक सच्ची कविता लिख रहा हूँ, जोकि राजनीति से कोई संबन्ध नहीं रखती है। पूरी कविता पढें, आपको जरूर पसंद आयेगी।


कविता का शीर्षक - मैं किसान हूँ, खुशहाली बाँट कर खाली हाथ रह जाता हूँ।


खुशहाली देश में लाता है,

हरियाली खेतों में लाता है,

फिर न जानें क्या होता है,

एक किसान जिंदगी की जंग हार जाता है।


मेहनत से जो नहीं डरता,

प्रकृति के संग जो जीता,

उम्मीद करने में क्या बुरायी है,

कि एक दिन मेहनत रंग लायेगी।


फिर जब फसल बेचने का दिन आता,

वो खिलोना मंडी का बन जाता,

इधर जाता उधर जाता,

और मजबूरी में घाटे का सौदा कर आता।


घर उसको भी चलाना है,

बच्चों को भी पढाना है,

सामाजिक जिम्मेदारी,

सौ जगहों पर जाना है।


महंगाई की मार पडती है,

मेरा भाई टूट जाता है,

जरूरत पूरी करने को,

साहूकार के जाल में फँस ही जाता है।


जिंदगी में पहले ही मुस्किल थी,

ये ॠण उसको खूब सताता है,

फिर एक दिन ऐसा आता है,

ये धरती का लाडला हार जाता है।

More Related Hindi Poem on Life:

Hindi Poetry on Life of Child Labor

Hindi Poem on Life of Indian Village

Hindi Poetry on Life of Farmer, Hindi Kavita on Life of Farmer

किसानों की जिंदगी के संघर्षों पर लिखी कविता किसान परिवारों से जुङे सभी लोग जरूर समझ पायेंगे। मेहनत हम सभी करते हैं, पर फिर सिर्फ किसान ही क्यों गरीब होता चला जा रहा है। कविता से संबन्धित अपने विचार जरूर शेयर करें।

यह Hindi Kavita on Life of Child Labor उस बच्चे के जीवन को बँया करती है, जिसको पढनें व खेलनें की उम्र में बाल मजदूरी पर लगना पड़ जाता है। बाल मजदूरी को बहुत करीब से महसूस करके यहाँ पंक्तियाँ लिखी गई हैं, जो आप सभी ऐसे बच्चों की मदद करने के लिए प्रेरित करेगी।


Hindi Kavita on Life of Child Labor 

कविता का शीर्षक- जब कभी मैं सोचता हूँ

अकल कुछ ही तो आयी थी,

समझ अब भी ना आयी थी,

मैं जाता था काम करने क्यों,

जब उम्र थी पढाई की।


घर में माँ-बाबा भी रहते थे,

कहने को मैं सबसे छोटा था,

ये ऐसी कैसी बस्ती थी,

जहाँ बचपन नहीं आता था।


काम करना और घर आना,

ये भी कहाँ नसीब होता,

न जाने कब नशे से दोस्ती कर ली,

न जाने कब जिंदगी से दुश्मनी कर ली।


मैं नहीं चाहता था ये सब कुछ हो,

पर मेरी कौन सुनता था,

करता तो मेहनत था,

पर क्या ये मेरी उम्र थी काम करने की?


न किसी से बालपन रूठे,

न किसी से शिक्षा का अधिकार छूटे,

ऐसा हर कोई कहता है,

पर क्या ये सच में होता है?


More Related Hindi Poem on Life:

Hindi Poetry on Life of Farmer

Hindi Poem on Life of Indian Village


यदि आप कविताओं को इमेज में पढना व शेयर करना पसंद करते है, तो हम बाल मजदूरी पर लिखी यह पूरी कविता इमेज में भी प्रस्तुत कर रहे हैं।

Hindi Kavita on Life of Child Labor, Hindi Poetry on Life of Child Labor

आशा है कविता आपको एक नया दृष्टिकोण प्रदान करेगी, अपने विचार व अनुभव जरूर शेयर करें।


नेचर पर कविताएँ

बचपन की यादों पर कविताएँ