Hindi Poetry on Social Issues - ये क्या बात है?


अगर हम जंगल में होते और जंगली होते तो कुछ और बात थी,
पर हम शहर में जंगली जानवर से निकले, तो ये क्या बात है?
अगर घर से बाहर निकली लड़की दुनिया की आखिरी लड़की होती तो कुछ और बात थी,
पर जो हम गिद्ध की नजरों से हर राह चलती लड़की को देखे, तो ये क्या बात है?

अगर धरती की कोर में हो और सुलगते हुए लावा हो तो कुछ और बात है,
पर जो हम देख अपने दोस्तों की खुशी बन फटे ज्वालामुखी, तो ये क्या बात है?
जो दुनिया की हर खुशी और गम का मर्ज नशा होता तो कुछ और बात थी, 
पर खुशहाल घर को तबाह और गम में बरबाद होने को नशा किया, तो ये क्या बात है?
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गरीब से काम लेकर उसको काबिल जिंदगी जीने के बनाया तो कुछ और बात थी, 
पर जो हमने गरीबो का निवाले छिन के महल बनाया, तो ये क्या बात है?
जिनसे सीखे हो चलना और जिंदगी की राहो में आगे बढना, उनको बुढ़ापे में प्यार दिया तो कुछ और बात है,
पर हमने उनके अहसानों को भूल कर उनको दर-ब-दर भटकाया, तो ये क्या बात है?
शानौ-शौकत कमायी संग परिवार के तो कुछ और बात है,
पर जो घर को वीराना बना कर पैसा कमाया, तो ये क्या बात है? 

कुछ और बात थी ... या....ये क्या बात है?
इन दोनों के बीच छिपी खुशियों की सौगात है,
जो समझे इसे तो कुछ और बात है, 
जो नासमझ है, तो क्या बात है?


Poem on Social Issues in Hindi : सामाजिक बुराईयों पर सटीक व्यंगात्मक कविता

मैं अनपढ़ हूँ, अच्छा हूँ;
मुझे बातें बनानी नहीं आती।
मैं देखता हूँ, दुनिया को;
मुझे झूठी दुनिया बनानी नहीं आती।
कम बोलता हूँ, सच बोलता हूँ;
मुझे अफवाह फैलानी नहीं आती।

अच्छा है, मैं अनपढ़ हूँ;
मुझे धोखाधड़ी नहीं आती।
कमा लेता हूँ, मैं मेहनत से;
मुझे कागजी चोरी नहीं आती।
हुनर तो सीख लेता हूँ;
पर जालसाजी नहीं आती।

अच्छा है, मैं अनपढ़ हूँ;
मुझे ये खबरें समझ नहीं आती।
समझता हूँ, मैं दर्द सीने का;
उस पर राजनीति करनी नहीं आती।

समझता हूँ, देश के खतरों को;
इसलिए जवान की इज्जत करनी आती है।
शराफत ही अमानत है;
उसमें मेरी गरीबी आड़े नहीं आती।
समझ थोड़ी सी कम होगी;
पर शराफत नहीं जाती।

अच्छा है, मैं अनपढ़ हूँ;
मुझे देश से गद्दारी नहीं आती

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Poem  No.14 - अद्भुत वर्षा


बहुत दूर से चाँदी के सिक्कों के खनकने की आवाज आ रही थी।
शाम मदहोश थी और अपने आगोश में डूबती जा रही थी।
राह में एक हंसो का जोड़ा प्रेमरस में गोते खा रहा था।

नाचती डोलती वर्षा की फुहारे प्रकृति का स्पर्श करते हुए धरा  पर आ रही थी।
मेघ पहली बार तो इस तरह तो नहीं बरसे थे,
फिर ये युगल क्यों इतना प्यासा नजर आ रहा था।
यूँ तो बारिश की बूंदें सबको भीगो रही थी,
पर इनके लिए खुशियों के हसीन पल संजो रही थी।
सब परेशा अपने घरोन्दो को जाने को थे,
पर ये तो मदमस्त अपने ख्वाबों में थे।

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हम ये नजारा अपने आशियाने से देख भर खुश थे,
तब ये उस पल को जिंदा दिली से जी रहे थे।
बारिश तेज हुई और भावनाओं का सैलाब ले आयी,
न रोक सके ये खुद को, और बढ चले प्रेम पथ पर आगे।
प्रकृति का वो दृश्य शान्त था, और झुक कर लताएं मुस्करा रही थी।
तब एक मस्त पवन का झौंका आया प्रेम पराग को फैलाने,
बहुत दूर-दूर तक ये बात गयी है, चर्चा होगी हर घर में।
जब ये प्रेम पसरेगा हर घर में, तभी तो दिल से बैर मिटेगा। 

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