Poem No.14 - अद्भुत वर्षा
बहुत दूर से चाँदी के सिक्कों के खनकने की आवाज आ रही थी।
शाम मदहोश थी और अपने आगोश में डूबती जा रही थी।
राह में एक हंसो का जोड़ा प्रेमरस में गोते खा रहा था।
नाचती डोलती वर्षा की फुहारे प्रकृति का स्पर्श करते हुए धरा पर आ रही थी।
मेघ पहली बार तो इस तरह तो नहीं बरसे थे,
फिर ये युगल क्यों इतना प्यासा नजर आ रहा था।
यूँ तो बारिश की बूंदें सबको भीगो रही थी,
पर इनके लिए खुशियों के हसीन पल संजो रही थी।
सब परेशा अपने घरोन्दो को जाने को थे,
पर ये तो मदमस्त अपने ख्वाबों में थे।
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हम ये नजारा अपने आशियाने से देख भर खुश थे,
तब ये उस पल को जिंदा दिली से जी रहे थे।
बारिश तेज हुई और भावनाओं का सैलाब ले आयी,
न रोक सके ये खुद को, और बढ चले प्रेम पथ पर आगे।
प्रकृति का वो दृश्य शान्त था, और झुक कर लताएं मुस्करा रही थी।
तब एक मस्त पवन का झौंका आया प्रेम पराग को फैलाने,
बहुत दूर-दूर तक ये बात गयी है, चर्चा होगी हर घर में।
जब ये प्रेम पसरेगा हर घर में, तभी तो दिल से बैर मिटेगा।
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