जब भी देखता हूँ तुम्हें,
अपने बचपन में खो जाता हूँ।
जो याद नही बातें,
तुम्हें देखकर वो यादें बनाता हूँ।


जब सीखा था तुमने चलना,
मैं अब कुछ वैसा ही लङखङाता हूँ।
जैसे हँसते हो तुम हरदम,
वैसे ही सामने दर्पण के मैं भी हँसता रहता हूँ।

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सोचता हूँ सब कुछ ऐसा ही रहा होगा,
जैसा तुमको करते देखता हूँ।
जो बातें तुमको शायद याद न रहे,
उनको कैमरे में कैद करता रहता हूँ।

नौनीहाल होना कितना सुकुन भरा होता है,
फिरसे तुम जैसा काश मैं बन पाऊ।
तुम रोते हो, कभी गुस्सा होते हो,
फिर एक पल में भूलकर सब,
सीने से मेरे लग जाते हो।

हर पल प्यार जताते हो,
जो याद नहीं मुझको,
मुझे वो सब खुली आँखों से हर रोज हमें दिखाते हो।

Childhood Memories, Childhood Play और दोस्तो के किस्से, न जाने ऐसे कितने एहसास हैं जिन पर मौलिक कविताएँ लिखि जा सकती है। निचे कुछ और हमारी स्वरचित हिन्दी कविताएँ बचपन (Hindi Poem on Childhood)पर हैं, आपको पढकर जरूर अनन्द की अनुभूती मिलेगी।

मैं अलविदा कहता हूँ

एक वक्त तो आना था,

जब कभी न कभी,

हमको कुछ चीजों से दूर हो जाना था।


मैं अलविदा कहता हूँ,

उन यादों को

जो मुझे कल में बान्धें रखती है।


मैं अलविदा कहता हूँ,

उन बातों को,

जिसमें बस मैं ही मैं रहता हूँ।

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मैं अलविदा कहता हूँ,

रिस्तों की उन जंजीरों को,

जो भीष्म बन जाने को कहती हैं।


मैं अलविदा कहता हूँ,

उन विचारों को,

जो मुझे हर वक्त मौन बनाये रखती हैं।


एक वक्त तो आना था,

जब कुछ बातों पर 

प्रश्न चिह्न लग जाना था।


मैं अलविदा कहता हूँ,

उन अनसुलझे सवालों को,

जिनको मन को ही सुलझाना है।


मैं अलविदा कहता हूँ,

हर रोज की तू-तू, मैं-मैं को,

जिसका अंजाम रुलाना होता है।


मैं अलविदा कहता हूँ,

उन दोस्तों को

जिनका साथ बस मतलब भर का होता है।


मैं अलविदा कहता हूँ,

उन आदतों को

जिनका मैं हूँ गुलाम बना।


मैं अलविदा कहता हूँ,

उस सुकून को

जो किसी के दर्द से पैदा होता है।


एक वक्त तो आना था

जब कुछ बातों से

हमको ऊब जाना था।


मैं अलविदा कहता हूँ,

हर उस लोक लुभावन चीजों को

जिसने कल ही गुम हो जाना है।


मैं अलविदा कहता हूँ,

उस दौङ को

जिसमें मुझे अकेले आगे निकल जाना है।


मैं अलविदा कहता हूँ,

उन सारी बातों को

जिनको पूरा करते करते

मैं खुद ही कहीं पीछे रह जाता हूँ।

जीने की जो परिभाषा है,

उसे ही भूल सा जाता हूँ।

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