हिमालय को हम पर्वतों का राजा कहते हैं। इसकी सुन्दरता और दर्द पर लिखी गई यह Hindi Poem आपको बहुत से Social Issues पर सोचने के लिए मजबूर करेगा।
पहाड़ों पर बढता प्लासटिक कचरा यहाँ की सुन्दरता व पर्यावरण दोनों को नुकसान पहुँचाता है। उम्मीद है यह Hindi Poem on Mountain आपको पसंद आयेगी, और आप जब भी पहाड़ों पर घूमने जायें तो अपना कचरा खुले में फेंक कर ना आयें।
इन पहाङी वादियो में धूल सी क्यों छा गयी,
यह विकास की आंधी कैसी आयी है।
दरक रहे हैं न जाने कितने हिस्से मेरे पहाङ के,
ये टूटते पत्थर, फिसलती मिट्टी, न जाने कब कहर बन जायेगी।
प्रकृति को प्रकृति ही जुदा करने की
किसने यह तरकीब बनायी है।
सङकों के माया जाल में,
हम बन बैठे अनजान हैं।
ये कल-कल करती नदियाँ,
हर पल गिरते झरने,
और पुराने बजारो की रौनक,
कहीं गुम होते जा रहे हैं।
वो सूरज का ढलना, पहाङो में छिपना,
धूल की चादर में सिमटता जा रहा है।
चिङियों का चहकना, नदियों का कल-कल,
मशीनी आवाजों से दबता जा रहा है।
फिर आती है वर्षा, करती है तांडव,
मंजर तबाही का हमको है दिखाती।
रुलाता है हमको हर छोटा नुकसान अपना,
पर पेङों का कटना, बेघर जानवरों का होना,
क्यों नहीं हमको हे रुलाता।
जिन्दगी जीने का मायना बदला है हमने,
हर जगह मोल- भाव करते हैं यूँ ही।
विकास की आँधी चली कुछ इस कदर है,
भूल जाते हैं हम, हमको इसी प्रकृति ने है बनाया।
संजोयेंगे हम तो, प्यार करती रहेगी,
बिखेरेंगे हम तो, सन्तुलन वो खुद है बनाती।
इंतजार क्यों उस दिन का है करना,
जब बनना पड जाये मूकदर्शक हमको।
यह कविता हिमालय पर्वत पर हो रहे निर्माण कार्यो की वजह से हो रहे नुकसान पर आधारित है। एक तरफ विकास कार्य आवश्यक भी है पर इसकी वजह से पहाड़ो की सुन्दरता खोती सी जा रही है। इसी दर्द को बया करती है Himalaya Parvat पर लिखी यह कविता।