हिन्दी कविता संग्रह on Childhood Memory (बचपन की यादें)


तितलियों के रंगीन पंखों ने हमको खींचा,
या हमारी उड़ने की चाहत ने हमको उनकी ओर खींचा.
मैं तो उड़ने लगा था, आंखों में भर कर ख्वाब ढेर सारे.
Kids Poem, Poem at Childhood, Hindi Poem

न जाने क्यों हर आसमानी  चीज भाने लगी थीं, 
आसमां पर सितारों से ज्यादा उड़ते बादल भाने लगे थे.

बिन बताएं खुशियां दस्तक देने लगी थी, तितलियों सी  रंगीन जिंदगी हो चली थी.
न जाने क्यों जवानी की आते ही वो नजर खो चुकी थी, सब कुछ वही था पर हंसी खो चुकी थी.



Childhood (बचपन) से जुड़ी अन्य स्वरचित हिन्दी कविताएँ( Hindi Poem Collection on Childhood)

1. बचपन शीर्षक पर कविता - भाग 2 । Hindi Kavita on Childhood

2. Collection of Poems on Childhood( बच्चपन पर कविता - भाग 1)

3. Poem on Childhood in Hindi - बचपन पर हिन्दी कविता

ऐ जिंदगी तेरा नाम इतिहास की सबसे बड़ी जंग में शामिल क्यों नहीं?
हर वक्त तो लड़ते हैं हम जीने के लिए,
लड़ते हैं कभी छत के लिए, कभी इस तन को ढकने के लिए।
लड़ता है गरीब दो वक्त की रोटी के लिए, और लड़ते हैं हम मजहब के लिए।
खून के प्यासे हो जाते हैं हम शोहरत के लिए।
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जिंदा रहना भी एक सलीका है, वरना मासूम यहां पीस जाते है।
न कोई तीर - न कोई दुश्मन नजर आता है, 
जब चोट होती है तभी आघात नजर आता है। 
जिंदगी तेरा नाम कहीं जिद्द तो नहीं,
ना जाने किसकी जिद्द के लिए, ना जाने कौन इस दुनिया से चला जाता है ।
जिंदगी तेरा नाम इतिहास की सबसे बड़ी जंग में शामिल क्यों नहीं?
हर वक्त लड़ रहे हैं हम, इसलिए यह ख्याल आता है।

                                                               इस श्रृंखला की पहली कविता - जिंदगी .01

न जाने क्या लिखने को जी चाहता है,
पर कोरे कागजों को भावों से भरने का जी चाहता है।
न जाने कितने दिन गुजरे हैं ये सोचने में,
आखिर मेरा दिल क्या चाहता है?
मन का शून्य में होना भी एक भाव है,
इस जज्बात को जताना चाहता हूँ।
इन कोरे पन्नों को न जाने कब से देखता जा  रहा हूँ,
हर बीते लम्हे के संग इनसे और भी ज्यादा जुड़ता जा रहा हूँ। 
जिंदगी जब इस मोड़ पर आ खड़ी हो,
जब कुछ न सोचना एक सोच बन गई हो।
तो उस वक्त खुद से एक बात कर लो,
क्या हमको खुद की समझ हो चली है?
या सलीका आज में जीने का आ गया है।

अगर ये आखिरी दिन होता


क्या होता जो ये जिंदगी का आखिरी दिन होता,
ये आने वाला कल बस बातों में रह जाता,

जो आदत पड़ी है मुझको छोड़ने की कल पर,
क्या आज भी इस दिन को कल पर छोड़ जाता।

बिन वक्त गवाये मैं कुछ काम में जुट जाता,
यादों में रहते है जो दोस्त मेरे, उनसे मैं कुछ बातें कर लेता।
झट से करता एक मैसज टाईप, और थैंक्यू मैं सबसे कहता।
याद करता उन सबको, जिनको किया परेशान कभी,
उन सबको दिल से सॉरी मैं कहता।

सोने को गोद तलाशता मैं माँ की,
लड़-झगड़ने को भाई-बहिन को बुला लेता,
बच्चों को सिर्फ प्यार ही देता,
और जीवन-साथी को कहता,
बैठो दो घड़ी तुमको निहार लूँ,
बाते बस उस पल दिल की होती,
रिश्ते पर उम्र का पहरा ना होता।

मैं हर वो कोशिश करता, 
जो मैंने छोड़ दी था कल पर,
मैं हर वो काम मुकम्मल करता,
जिसका मुझमें हुनर होता।

शायद मैं भूल जाता मजहब को,
दिल में कोई बैर न होता,
सब में मुझको अच्छा ही दिखता,
सब कुछ मुझको मुमकिन लगता।

शायद हम सब कुछ ऐसा ही करते,
जो ये हमारा आखिरी दिन होता,
ये दिन गुजरेगा और एक नया वर्ष शुरू हो जायेगा,
कब तक कल पर छोड़े जीवन को,
अब बस आज को ही बेहतर जीया जायेगा। 
                                           "" Very Happy New Year to All of You ""

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Live every day like it is your last day. Follow your dreams, forget your problems, never hold back yourself, you never know what's around the corner.

Poem in Garhwali ( गढवाली बोली में कविता)- प्रीत की मार


कदगी तेज भागी मी यन ऊँचा-नीचा बाटों बै,
फाल मारी मिल हमारा ऊँचा बाड़ा बे,
ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी घुन्डा छिले के...

अब यन न देख तू म्यारा फाटया सुलार ते,
हक-बक मा फसी छो मी कुँजी का बीच मा,
ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी घुन्डा छिले के...

यन नजर से ना देख मैते,
माना आज नी दिखणू छो मी मनखी जन,
रात ज्यादा लगेली छे मीलयो मिन,
और भीड़गी छो 2-4 नौनो संग।
पर ते मिलड़ आयूँ ची मी,ये बन्द नीली आँखी मा।

मी नी छो तेरो बाबू को हल्या,
फिर किले बिठायूँ मैंते ये डीप धार मा।
संग बैठ, कुछ गप लड़ो ये बीचली धार मा।
ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी घुन्डा छिले के...

यती उधभरी भी कभी न छो मी,
पर न जाड़ी ग्रहो की क्या कुचाल चली,
सिदा बाटा औणू छौ मी, न जाड़ी कनके ढसाक लगी।

माना की कुछ दोष यन धूपी चश्मों को भी छो,
जूँ रुमकी बगत भी लगयाँ छा,
पर पिछली शनिवार किले बोली तेन, य्ँ में पा जचणा छा।
अब ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी, ये टूटया चश्मा ते खिशा मा लगेके।

हाकी बार औंण से पैली मिल दिन दिखोण,
आज त मी फँसी रम की बास मा, हाकी बार मिल वोडका लगोंण।
जरा ता भाव दे छोरी, आयूँची ये दूर धार मा,
जु नी होंण छो मी दगड़ी, सब कुछ ह्वेगी ये बार मा।

ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी घुन्डा छिले के...
छवाड़ के ये नखरा अपड़ा जरा प्रीत दिखे दे।


इस Blog की सभी कविताएँ स्वरचित है, यदि आप कोई भी हिन्दी या गढवाली कविता का उपयोग करना चाहते हैं तो हमारी अनुमती अवश्यक है। इस Garhwali रचना को पढने के लिए धन्यवाद।  Garhwali, Uttarakhand में बोली जाने बाली एक बोली है, जोकी हिन्दी की तरहा ही लिखि व पढी जाती है।

युवाओ की सोच पर हिन्दी कविता - सबसे पहले क्या चाहिए?

यह कविता आज की नयी पीढी के युवाओ की सोच पर आधारित है, आज के बच्चो को अपने जीवन में बहुत कुछ नया चाहिए। उनकी सोच को इस कविता भें दर्शाने की कोशिश की गई है।

मुझे अलग-अलग राजनीतिक विचार धाराओ से मुक्त भारत नहीं चाहिए,
मुझे हर अच्छी राजनीतिक पार्टी चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे दो वक्त की रोटी और पक्का घर चाहिए।

मुझे मैक इन इंडिया और एफ.डी.आई. भी चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे सरकारी स्कूल में अच्छी शिक्षा चाहिए। 

मुझे साइनिंग इंडिया और डिजिटल इंडिया भी चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे शिक्षा की काला बाजारी  बंध चाहिए।

मुझे मंदिर और मस्जिद दोनों चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे अपने बच्चों का बेहतर भविष्य चाहिए।

Polictical Poem, Social Poetry, Hindi Poem


मुझे अपनी बिटिया मिस. वर्ड और साइन्सटिस्ट भी चाहिए,
पर इन सब के संग मुझे हर एक लड़की की सुरक्षा चाहिए।

मुझे एम्स और आई.आई.टी. भी चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे जिला अस्पताल में डॉक्टर, दवा और टेस्ट चाहिए।

मुझे स्वच्छ भारत और बुलेट ट्रेन भी चाहिए,
पर इन संग मुझे गाँवों तक रोडवेज बस भी चाहिए।

मुझे कश्मीर से लेकर डोकलाम चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे खाली पड़े गाँवों में 2-4 लोग चाहिए।

ये सब तो शायद मुझे चाहिए, आप भी सोच लो आपको पहले क्या चाहिए।
मुझे तो मेरा परिवार खुश चाहिए, ना कोई मजहब की बंदिश ना कोई गुटबाजी चाहिए। 

नेचर पर कविताएँ

बचपन की यादों पर कविताएँ