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मातृ शक्ति पर हिन्दी कविता - जानकी से जगतजननी बनने का सफर

यह प्रेरणादायक कविता माता सीता के जीवन से मिलने वाली प्रेरणा को आप सभी तक पहुँचाने का एक प्रयास है।


स्वयं से, स्वयंवरा बनने का यह सफर आसा न था।

मैं से, जगतजननी  बनने का यह सफर आसा ना था।


मर्यादाओ मे तो बन्धे श्रीराम थे,
पर मर्यादाओ को निभाना भी कहाँ आसान था।
पथ दिखाया है जो प्रभु ने,
चलना उस पर धर्म था।
पुष्प हो या अग्निपथ,
चलना उनको निष्काम था।

दासी जिनकी रानीयो सा जीवन करती थी बसर,
उस तीनो लोको की स्वामीनी को वन में जीवन बिताना कहाँ आसान था।
कष्ट इतने में रूकते कहाँ है,
फिर वन से हरण उनका हो गया।
राजसी वैभव जिसने था छोङा,
उसे मृग का मोह कैसे हो गया?
जो सरल थी नीर सी,
वो बाल हठ क्यो कर गयी?
स्वामीनी बैकुंठ लोक की,
कालचक्र मे क्यो फस गयी?

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राजा राम का श्रीराम बनने का यही संयोग था।
चल पङी सीता हरण हो,
एक पथ प्रदर्शक की तरह।
स्वर्ण लंका थी जिनके लिए अति तुच्छ सी,
ऐसी पतिव्रता को रावण चला था मोहने।
फिर एक जीवन बिताया योगीनी का,
जो बना आर्दश है।

जब नही थी आस कोई,
तब भी संकल्प अडिग पर्वत सा रहा।
सहारा लेकर एक तिनके का,
दशानन का अभिमान भंजन करती रही।
फिर बनी साक्ष्य समय की,
जब रावण जर संग चल पङा।
स्थापना हुई धर्म की,
जिस धरा पर पग उनका था पङा।

आ गयी थी जानकी अब,
अयोध्या के राज्य में।
जल रहे थे दीप हर ओर,
हर्ष और उल्हास में।

त्याग और बलिदान को जैसे यह जीवन था बना,
जल्द आ गया वह दिन भी,
जब अग्निपथ पर चलना पङा।
मर्यादा पुरूषोत्तम तो बन गये श्रीराम थे,
पर मर्यादाओ की आग मे चल रहा कोई और था।
मैं से, जगतजननी बनने का यह सफर,
सच में कहाँ आसान था।

जिन्दगी बस बढ तो रही थी,

बहानो ही बहानो में,

पसीना न बह जाये,

ख्यालो ही ख्यालो में।


दुनिया बदलने ही तो वाली थी,

सपनो के आयने में,

एक छोटी सी ठोकर,

जमी पर हमको ले आयी।


खड़ा था घर के आँगन में,

सामने मेरी परछायी थी,

दिन चढ चुका था,

ख्यालो की बुनायी में।

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इस दिल को समझाना,

कहाँ आसान होता है,

जब भी चुप बैठो,

ये खुद ही जाग जाता है.


आशा है, निराशा है,

ये अरमानो के दो पहलु है,

बनायी जिसने ये दुनिया है,

उसे बस कर्म भाता है।


ना आशा हो कर्म फल की,

न निराशा हो असफलता की,

स्वपन को लक्ष्य में बदलो,

बहानो को कर्म से बदलो।


मिला जो एक अवसर है,

उस अवसर को स्वर्ण में बदलो,

आये हो धरा पर तो,

धरा को स्वर्ग में बदलो।

Teacher Day Shayari in Hindi - शिक्षक कौन है?

क्या शब्द है,

क्या है नम्बर,

हम सबसे अन्जान थे।


क्या है धरती,
क्या है अम्बर,
हम सब तो हैरान थे।

क्या है सर्दी,
क्या है गर्मी,
ऋतु चक्र क्या एक विज्ञान है।

देखा-देखा सा था सब कुछ,
पर इनके नामो से अन्जान थे,
फिर वो आये जीवन मे,
हल लेकर हर जिज्ञासा का।
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शब्द भी सिखे,
अंक भी सिखे,
दिखाया हमको एक संसार नया।

बदलने लगा दायरा सोच का,
फिर समझाया विज्ञान है क्या,
विषय अनेक थे उनके पास,
और समझाया हमको शिक्षा का सार,
पढो अपनी रूचि से सब कुछ,
शिक्षा नही है कोई व्यापार।

पुस्तक की दुनिया हमे दिखायी,
इसमे हमको सैर करायी,
आगे बढने की राह दिखायी।

ऐसे ही हर एक शिक्षक ने,
इस देश की नीव बनायी,
आप सबके उपकार है हम पर,
करते है हम, सत् सत् नमन,
सत् सत् नमन।

यह Teachers Day Shayari उन सभी शिक्षको को समर्पित है जिन्होने हमको जीवन के अलग अलग पडाव पर अच्छी शिक्षा दी व हमको सही राह दिखायी। शिक्षा स्कूल से जरूर शूरू होती है, पर ज्ञान अर्जन तो हमको पूरे जीवन भर करना होता है। इसी सफर में अनेको लोग हमारे शिक्षक बन जाते है।

हम 26 जनवरी व 15 अगस्त आते ही देशभक्ति व निष्ठा की बाते करते है, पर देशहित पर लिखी हमारी यह कविता आपको सच्चाई का आयना दिखायेगी। आज भी हम सब को मिल कर इस देश को बेहतर बनाने के लिए बहुत से सुधार करने की अवश्यकता, आशा है हमारी कवितायें आपको पसंद आयेगी।

देशहित में कविता


दर्द ही दर्द हे, मेरे देश के सीने में,
इस दर्द से मेरा दिल भी पसीज जाता है।
ये जो बच्चे सो रहे है सड़को पर,
इनको देख विकास की बातों से भरोसा उठ जाता है।

कभी शहादत जवानों की सुनता हूँ,
तो कभी खुदकुशी किसानों की।
जब भी ये बेहाली देखता हूँ,
जय जवान, जय किसान का नारा भूल जाता हूँ।

राह चलती लड़की संग, जब ये दुर्व्यवहार होता है,
तब अपने दिये वोट पर, मैं ही खुद पछताता हूँ।
जब सरकारे घोटाला कर रही होती हे, 
तो आम इनसान को लाचार पाता हूँ।

जब जगमगाती गाड़ीयॉ, गरीबों को रौंद जाती है,
और अदालत में घरवालों को खरी खोटी सुनायी जाती है।
तब विश्वास होता हे, कानून तो अपना अंधा है।

हर बार दिल ऐसे ही दर्द में डूब जाता है,
जब देश का दर्द ऐसे सामने आता है।

देश के वीर शहीद सैनिको को समर्पित कविता


देख माँ तेरा आंचल रंग आया हूँ,
बच्चों को तेरी बाँहों में रोता छोड़ आया हूँ।
शिकायत तो उसको होगी ना माँ,
बिन बताए जिसे मैं चला आया हूँ।
जिंदगी के सफर में सबको अकेला छोड़ आया हूँ,
तुझसे मिलने को उस बूढ़ी मां को अकेला छोड़ आया हूँ।

मैं अभी थका तो नहीं था, 
पर तेरे कदमों में जा ये लगा आया हूँ। 
मैं मिटाकर सब रंग एक घर के,
तेरे गुलिस्तां को दुश्मनों से बचा आया हूँ।

मेरे भाई, मेरा बदला तो ले आएंगे,
दुश्मन को उसके घर में कुचल आएंगे।
ना उठा पाएगा नजर फिर से,
इस बार वो ऐसा कुछ कर आयेंगे।

मैं आगे बढ़ा, तो पीछे विरासत शहादत की छोड़ आया हूँ,
मैं अकेला चला था, आज अपने पीछे सैकड़ों को खड़ा कर आया हूँ।

देशभक्ति व देशहित से सम्बन्धित हमारी और कविताएँ


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पाँच साल में आता है,
ये चुनाव का मौका हर रोज नहीं आता है।
कुछ समझ को बढाओ, मेरे समझदारों,
इन नेताओं को इनका असली चेहरा दिखाने का मौका रोज नहीं आता।
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जब ये आये कैमरों के संग घर रोटी खाने,
तो इनकी एक थाली की कीमत जान लेना।
जब ये दे मुफ्त की चीजे,
तो किसकी जेब खाली की ये पूछ लेना।
हर रोज ये दिन आयेगा नहीं,
लगे हाथों कितना पढे़ं हे, ये भी जान लेना।

जो ये बैठ जाये जमी पर,
तो इनसे इस की कीमत जान लेना।
और भी तो बहुत बाते होंगी तेरे मन में,
आज तेरा दिन हे, हर तरफ से इनको टटोल लेना।
फिर पाँच साल का वनवास हे बाबू,
इस बार किसी राम के हाथों ही राज्य सौंप देना।

मेरा खून खोल जाता है,
जब भी मेरी जमी पर कोई वारदात होती है।
दो दिन तो मैं कहता हूँ,
मैं फिक्रमंद हूँ इस सर जमी का।
फिर दिन बीते, महिने बीते,
करने लगा फिर में राजनीति।
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मेरा ना कोई धर्म है, ना हे जाति,
अब मानवता भी मर गयी हे मेरी।
मुझे फायदे दिखते हे मेरे,
ये शहादतो पर मोन होना तो मेरी मजबूरी है।

मुझे फर्क नहीं पड़ता, किसान क्यों हे मरते,
ये सुखा, ये बाढ क्यों हे आती।
मुझे तो मंच हे मिल जाता,
जब भी कोई खबर हे आती।

मुझसे उम्मीद लगाने वाले की हे गलती,
क्यों तुम मुझे 70 सालो में न समझे।
मुझे सिर्फ वोट से हे मतलब,
बाकि सब बेवफाई हे। 


मैं अनपढ़ हूँ, अच्छा हूँ;
मुझे बातें बनानी नहीं आती।
मैं देखता हूँ, दुनिया को;
मुझे झूठी दुनिया बनानी नहीं आती।
कम बोलता हूँ, सच बोलता हूँ;
मुझे अफवाह फैलानी नहीं आती।

अच्छा है, मैं अनपढ़ हूँ;
मुझे धोखाधड़ी नहीं आती।
कमा लेता हूँ, मैं मेहनत से;
मुझे कागजी चोरी नहीं आती।
हुनर तो सीख लेता हूँ;
पर जालसाजी नहीं आती।

अच्छा है, मैं अनपढ़ हूँ;
मुझे ये खबरें समझ नहीं आती।
समझता हूँ, मैं दर्द सीने का;
उस पर राजनीति करनी नहीं आती।

समझता हूँ, देश के खतरों को;
इसलिए जवान की इज्जत करनी आती है।
शराफत ही अमानत है;
उसमें मेरी गरीबी आड़े नहीं आती।
समझ थोड़ी सी कम होगी;
पर शराफत नहीं जाती।

अच्छा है, मैं अनपढ़ हूँ;
मुझे देश से गद्दारी नहीं आती|

मैंने गुरबत के दिनों में,
इधर देखा, उधर देखा,
पर अपने अंदर नहीं देखा|

छिपे थे मोती मुझ में,
पर अपने अंदर के समंदर को छोड़,
मैंने हर एक छोटी-बड़ी दरिया को देखा|

छुपी थी आशा की किरण मुझ में,
पर हर बार मैंने आसमा की ओर देखा|

मैंने समझाने वाले लोगों की ओर देखा,
पर जिस दिल को समझाना था, 
कभी उस और नहीं देखा|
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कहीं एक बार फिर गिर ना जाऊं,
इस डर से मैंने ऊंचाइयों को नहीं देखा|

दौलत-शोहरत देखी मैंने लोगों की,
पर उनके जज्बे को नहीं देखा|

मैंने हर एक चीज देखी गुरबत के दिनों में,
पर अपने अंदर बहुत देर से देखा|

ऐ जिंदगी तेरा नाम इतिहास की सबसे बड़ी जंग में शामिल क्यों नहीं?
हर वक्त तो लड़ते हैं हम जीने के लिए,
लड़ते हैं कभी छत के लिए, कभी इस तन को ढकने के लिए।
लड़ता है गरीब दो वक्त की रोटी के लिए, और लड़ते हैं हम मजहब के लिए।
खून के प्यासे हो जाते हैं हम शोहरत के लिए।
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जिंदा रहना भी एक सलीका है, वरना मासूम यहां पीस जाते है।
न कोई तीर - न कोई दुश्मन नजर आता है, 
जब चोट होती है तभी आघात नजर आता है। 
जिंदगी तेरा नाम कहीं जिद्द तो नहीं,
ना जाने किसकी जिद्द के लिए, ना जाने कौन इस दुनिया से चला जाता है ।
जिंदगी तेरा नाम इतिहास की सबसे बड़ी जंग में शामिल क्यों नहीं?
हर वक्त लड़ रहे हैं हम, इसलिए यह ख्याल आता है।

                                                               इस श्रृंखला की पहली कविता - जिंदगी .01

युवाओ की सोच पर हिन्दी कविता - सबसे पहले क्या चाहिए?

यह कविता आज की नयी पीढी के युवाओ की सोच पर आधारित है, आज के बच्चो को अपने जीवन में बहुत कुछ नया चाहिए। उनकी सोच को इस कविता भें दर्शाने की कोशिश की गई है।

मुझे अलग-अलग राजनीतिक विचार धाराओ से मुक्त भारत नहीं चाहिए,
मुझे हर अच्छी राजनीतिक पार्टी चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे दो वक्त की रोटी और पक्का घर चाहिए।

मुझे मैक इन इंडिया और एफ.डी.आई. भी चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे सरकारी स्कूल में अच्छी शिक्षा चाहिए। 

मुझे साइनिंग इंडिया और डिजिटल इंडिया भी चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे शिक्षा की काला बाजारी  बंध चाहिए।

मुझे मंदिर और मस्जिद दोनों चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे अपने बच्चों का बेहतर भविष्य चाहिए।

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मुझे अपनी बिटिया मिस. वर्ड और साइन्सटिस्ट भी चाहिए,
पर इन सब के संग मुझे हर एक लड़की की सुरक्षा चाहिए।

मुझे एम्स और आई.आई.टी. भी चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे जिला अस्पताल में डॉक्टर, दवा और टेस्ट चाहिए।

मुझे स्वच्छ भारत और बुलेट ट्रेन भी चाहिए,
पर इन संग मुझे गाँवों तक रोडवेज बस भी चाहिए।

मुझे कश्मीर से लेकर डोकलाम चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे खाली पड़े गाँवों में 2-4 लोग चाहिए।

ये सब तो शायद मुझे चाहिए, आप भी सोच लो आपको पहले क्या चाहिए।
मुझे तो मेरा परिवार खुश चाहिए, ना कोई मजहब की बंदिश ना कोई गुटबाजी चाहिए। 

Hindi Poetry on Social Issues - ये क्या बात है?


अगर हम जंगल में होते और जंगली होते तो कुछ और बात थी,
पर हम शहर में जंगली जानवर से निकले, तो ये क्या बात है?
अगर घर से बाहर निकली लड़की दुनिया की आखिरी लड़की होती तो कुछ और बात थी,
पर जो हम गिद्ध की नजरों से हर राह चलती लड़की को देखे, तो ये क्या बात है?

अगर धरती की कोर में हो और सुलगते हुए लावा हो तो कुछ और बात है,
पर जो हम देख अपने दोस्तों की खुशी बन फटे ज्वालामुखी, तो ये क्या बात है?
जो दुनिया की हर खुशी और गम का मर्ज नशा होता तो कुछ और बात थी, 
पर खुशहाल घर को तबाह और गम में बरबाद होने को नशा किया, तो ये क्या बात है?
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गरीब से काम लेकर उसको काबिल जिंदगी जीने के बनाया तो कुछ और बात थी, 
पर जो हमने गरीबो का निवाले छिन के महल बनाया, तो ये क्या बात है?
जिनसे सीखे हो चलना और जिंदगी की राहो में आगे बढना, उनको बुढ़ापे में प्यार दिया तो कुछ और बात है,
पर हमने उनके अहसानों को भूल कर उनको दर-ब-दर भटकाया, तो ये क्या बात है?
शानौ-शौकत कमायी संग परिवार के तो कुछ और बात है,
पर जो घर को वीराना बना कर पैसा कमाया, तो ये क्या बात है? 

कुछ और बात थी ... या....ये क्या बात है?
इन दोनों के बीच छिपी खुशियों की सौगात है,
जो समझे इसे तो कुछ और बात है, 
जो नासमझ है, तो क्या बात है?


Poem on Social Issues in Hindi : सामाजिक बुराईयों पर सटीक व्यंगात्मक कविता

मैं अनपढ़ हूँ, अच्छा हूँ;
मुझे बातें बनानी नहीं आती।
मैं देखता हूँ, दुनिया को;
मुझे झूठी दुनिया बनानी नहीं आती।
कम बोलता हूँ, सच बोलता हूँ;
मुझे अफवाह फैलानी नहीं आती।

अच्छा है, मैं अनपढ़ हूँ;
मुझे धोखाधड़ी नहीं आती।
कमा लेता हूँ, मैं मेहनत से;
मुझे कागजी चोरी नहीं आती।
हुनर तो सीख लेता हूँ;
पर जालसाजी नहीं आती।

अच्छा है, मैं अनपढ़ हूँ;
मुझे ये खबरें समझ नहीं आती।
समझता हूँ, मैं दर्द सीने का;
उस पर राजनीति करनी नहीं आती।

समझता हूँ, देश के खतरों को;
इसलिए जवान की इज्जत करनी आती है।
शराफत ही अमानत है;
उसमें मेरी गरीबी आड़े नहीं आती।
समझ थोड़ी सी कम होगी;
पर शराफत नहीं जाती।

अच्छा है, मैं अनपढ़ हूँ;
मुझे देश से गद्दारी नहीं आती

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Simple Hindi Poem on Social Issues - परिचय का नया अंदाज 


दादा जी बैठे थे गांव की चौपाल पर, देख एक नन्हे बालक से पूछे,
बेटा अपना  परिचय दो, लपक कर बालक बोला,
लगता हे टी.वी. नहीं हे घर में, हम एम.एल.ए. के बेटे है।

कक्षा के पहले दिन जब शिक्षक ने छात्रौ का परिचय पूछा,
तो ये जान हैरान था, कि सभी एक ही बिरादरी के है,
कोई नेता जी का पास का रिश्तेदार, तो कोई दूर का निकला।

ट्रैफिक पुलिस ने जिसको भी रोका, उसके फोन में नेता जी का नंबर निकला,
इस तरह पूरा देश डिजीटल भारत बनने की और चला।
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घरवालों ने बच्चों को परिचय देने का नया तारिका सिखाया,
कोई पद जब ना हो, तो माँ-बाप को नेता प्रति-पक्ष ही कहना।

इस रफ्तार से सब बदला तो, नेता ही एक जाति रह जायेगी,
और इनके रिश्तेदार होना ही एक पहचान रह जायेगी।

हर सवाल का जब ये ही एक जवाब रह गया होगा,
तो समझ जाना देश का दिवाला निकल गया होगा।

नेता तो देश का सेवक है, उसको बस सेवा करने का ही अधिकार दो,
और उसकी शक्ति और नाम से, अपनी खुद की पहचान को न मिटाओ।

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Attitude Shayari in Hindi - फिदरत


जो हुआ पुराना, 
उसको खंडहर  समझ लिया।
नए की आदत हुई ऐसी, 
कि इंसान को चादर समझ गया।

डोर रिश्तों की वैसे ही होती है नरम,
हम बिना परवाह के उस से पतंग बाजी करने लगे।
एक पल से छोटा कुछ भी नहीं, 
उस पल में रिश्तों को खोने लगे। 

जिक्र संचे प्यार का करो,
 तो क्यों इतने नाम साथ होते है।
जिंदगी यूं रूठी हे, 
घर श्मशान हो गया।
ये हुनर न जाने हमको कहाँ ले जायेगा,
चाँद बहुत दूर हे प्यारे, 
समंदर उसे कहाँ छु पायेगा।
कुछ और नए की चाहत में,  
तू सब कुछ खो जायेगा।
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बचपन की यादों पर कविताएँ