Poem in Garhwali ( गढवाली बोली में कविता)- प्रीत की मार


कदगी तेज भागी मी यन ऊँचा-नीचा बाटों बै,
फाल मारी मिल हमारा ऊँचा बाड़ा बे,
ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी घुन्डा छिले के...

अब यन न देख तू म्यारा फाटया सुलार ते,
हक-बक मा फसी छो मी कुँजी का बीच मा,
ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी घुन्डा छिले के...

यन नजर से ना देख मैते,
माना आज नी दिखणू छो मी मनखी जन,
रात ज्यादा लगेली छे मीलयो मिन,
और भीड़गी छो 2-4 नौनो संग।
पर ते मिलड़ आयूँ ची मी,ये बन्द नीली आँखी मा।

मी नी छो तेरो बाबू को हल्या,
फिर किले बिठायूँ मैंते ये डीप धार मा।
संग बैठ, कुछ गप लड़ो ये बीचली धार मा।
ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी घुन्डा छिले के...

यती उधभरी भी कभी न छो मी,
पर न जाड़ी ग्रहो की क्या कुचाल चली,
सिदा बाटा औणू छौ मी, न जाड़ी कनके ढसाक लगी।

माना की कुछ दोष यन धूपी चश्मों को भी छो,
जूँ रुमकी बगत भी लगयाँ छा,
पर पिछली शनिवार किले बोली तेन, य्ँ में पा जचणा छा।
अब ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी, ये टूटया चश्मा ते खिशा मा लगेके।

हाकी बार औंण से पैली मिल दिन दिखोण,
आज त मी फँसी रम की बास मा, हाकी बार मिल वोडका लगोंण।
जरा ता भाव दे छोरी, आयूँची ये दूर धार मा,
जु नी होंण छो मी दगड़ी, सब कुछ ह्वेगी ये बार मा।

ते मिलड़ का बाना आयूँ छो मी घुन्डा छिले के...
छवाड़ के ये नखरा अपड़ा जरा प्रीत दिखे दे।


इस Blog की सभी कविताएँ स्वरचित है, यदि आप कोई भी हिन्दी या गढवाली कविता का उपयोग करना चाहते हैं तो हमारी अनुमती अवश्यक है। इस Garhwali रचना को पढने के लिए धन्यवाद।  Garhwali, Uttarakhand में बोली जाने बाली एक बोली है, जोकी हिन्दी की तरहा ही लिखि व पढी जाती है।

युवाओ की सोच पर हिन्दी कविता - सबसे पहले क्या चाहिए?

यह कविता आज की नयी पीढी के युवाओ की सोच पर आधारित है, आज के बच्चो को अपने जीवन में बहुत कुछ नया चाहिए। उनकी सोच को इस कविता भें दर्शाने की कोशिश की गई है।

मुझे अलग-अलग राजनीतिक विचार धाराओ से मुक्त भारत नहीं चाहिए,
मुझे हर अच्छी राजनीतिक पार्टी चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे दो वक्त की रोटी और पक्का घर चाहिए।

मुझे मैक इन इंडिया और एफ.डी.आई. भी चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे सरकारी स्कूल में अच्छी शिक्षा चाहिए। 

मुझे साइनिंग इंडिया और डिजिटल इंडिया भी चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे शिक्षा की काला बाजारी  बंध चाहिए।

मुझे मंदिर और मस्जिद दोनों चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे अपने बच्चों का बेहतर भविष्य चाहिए।

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मुझे अपनी बिटिया मिस. वर्ड और साइन्सटिस्ट भी चाहिए,
पर इन सब के संग मुझे हर एक लड़की की सुरक्षा चाहिए।

मुझे एम्स और आई.आई.टी. भी चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे जिला अस्पताल में डॉक्टर, दवा और टेस्ट चाहिए।

मुझे स्वच्छ भारत और बुलेट ट्रेन भी चाहिए,
पर इन संग मुझे गाँवों तक रोडवेज बस भी चाहिए।

मुझे कश्मीर से लेकर डोकलाम चाहिए,
पर इन सब से पहले मुझे खाली पड़े गाँवों में 2-4 लोग चाहिए।

ये सब तो शायद मुझे चाहिए, आप भी सोच लो आपको पहले क्या चाहिए।
मुझे तो मेरा परिवार खुश चाहिए, ना कोई मजहब की बंदिश ना कोई गुटबाजी चाहिए। 

हमारे childhood(बचपन) की न जाने कितनी यादें होती हैं, जिनको हम हिन्दी की कविताओं में  सहेजना चाहते हैं, इसी श्रृंखला में ये  बचपन की हसीन यादों पर लिखी यह कविता आपको जरूर पसंद आयेगी।


हिन्दी कविता - बचपन की हसीन यादें

वो दिन कितने हसीन थे,
जब दिन खेलने को छोटे होते थे,
और रातें पढ़ने  को लम्बी लगती थी।

वो दिन सच में बहुत हसीन थे,
जब क्लास लम्बी लगती थी,
और इंटरवेल छोटे पड़ जाते थे।

हम कितने खुश थे तब,
जब पन्नी में बंधा टिफिन होता था
और बैग अपना फटा होता था।

हम सच में कभी बहुत खुश थे,
टेंन्शन का तो पता ना था,
पर होमवर्क पहाड़ सा लगता था।

वो हँसी कितनी सच्ची थी,
दोस्तों से ही लड़ते थे,
फिर संग ही ठहाके लगते थे।

वो भी क्या मस्ती होती थी,
बारिश में बिन छाते के जाते थे,
फिर देख भीगी किताबें अपनी, खुद ही खुश होते थे।
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बस एक ही तो था, जिससे हम सब डरते थे,
पर वो सर क्लास के बाद सबसे अच्छे लगते थे,
संग उनके मस्ती होती थी, और डंडे भी खाया करते थे।

एक दोस्त सयाना होता था,
जिसकी हर बातें सच्ची लगती थी,
जब भी कोई मसला होता,
ज्ञान वही तो देता था।

सच में वो दिन कितने अच्छे थे,
क्लास  में वो भी तो संग में पढ़ती थी,
बातों में वो मेरी-तेरी होती थी,
पर संग सहज ही रहते थे।

वो दिन मुझको याद आते हैं,
जब हमको जल्दी अठरा का होना था,
हमको भी कॉलेज जाना था,

सच में वो दिन कितने अच्छे थे,
जिसको हम बचपन कहते है, 
और अब इसकी यादों में खोये रहते हैं।

Hindi Poem on Childhood Memories - बचपन की यादें

वो सूरज का उगना
पहाड़ी में छिपना।
जब खेलते थे,
न दिन देखते थे,
न धूप-छांव देखते थे।
वो गुल्ली और डंडा,
मिट्टी में सनना,
ताने भी सुनते,
फिर भी ना सुधरते।
याद आती है हमको,
बचपन की हर एक कहानी।

तालाबों में जाते थे मछली पकडने, 
मेंढक के बच्चों को छोटी मछली समझते।
हाथ आती थी मिट्टी,
फिर भी खुश आते थे घर को।
सुबह सजते संवरते,
तेल बालों को करते,
घर से हमेशा स्कूल जल्दी निकलते,
फिर यारों से मिलते, ठहाके लगाते।
याद आती है हमको,
बचपन की हर एक कहानी।

जब अब सोचते हैं,
यही सोचते हैं,
काश लौट जायें वहीं हम,
जहाँ यादों में हम हैं रहते।

Hindi Poem on Childhood के इस काव्य संग्रह में एक नयी कविता जोड़ रहे है। इसी काव्य संग्रह की पहली हिन्दी कविता को आपने काफी प्यार दिया वा Social Media पर शेयर भी किया। हमें पूरा भरोशा है इन पंक्तियों को भी आप वैसा ही स्नेह देगें। 

बचपन पर हिन्दी कवाताएँ यहाँ से पढें।

1. 2. Collection of Poems on Childhood( बच्चपन पर कविता - भाग 1)
3. Hindi Poetry on Life of Child Labor - Hindi Poem on Childhood of a Child Labor


Hindi Poetry on Social Issues - ये क्या बात है?


अगर हम जंगल में होते और जंगली होते तो कुछ और बात थी,
पर हम शहर में जंगली जानवर से निकले, तो ये क्या बात है?
अगर घर से बाहर निकली लड़की दुनिया की आखिरी लड़की होती तो कुछ और बात थी,
पर जो हम गिद्ध की नजरों से हर राह चलती लड़की को देखे, तो ये क्या बात है?

अगर धरती की कोर में हो और सुलगते हुए लावा हो तो कुछ और बात है,
पर जो हम देख अपने दोस्तों की खुशी बन फटे ज्वालामुखी, तो ये क्या बात है?
जो दुनिया की हर खुशी और गम का मर्ज नशा होता तो कुछ और बात थी, 
पर खुशहाल घर को तबाह और गम में बरबाद होने को नशा किया, तो ये क्या बात है?
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गरीब से काम लेकर उसको काबिल जिंदगी जीने के बनाया तो कुछ और बात थी, 
पर जो हमने गरीबो का निवाले छिन के महल बनाया, तो ये क्या बात है?
जिनसे सीखे हो चलना और जिंदगी की राहो में आगे बढना, उनको बुढ़ापे में प्यार दिया तो कुछ और बात है,
पर हमने उनके अहसानों को भूल कर उनको दर-ब-दर भटकाया, तो ये क्या बात है?
शानौ-शौकत कमायी संग परिवार के तो कुछ और बात है,
पर जो घर को वीराना बना कर पैसा कमाया, तो ये क्या बात है? 

कुछ और बात थी ... या....ये क्या बात है?
इन दोनों के बीच छिपी खुशियों की सौगात है,
जो समझे इसे तो कुछ और बात है, 
जो नासमझ है, तो क्या बात है?


Poem on Social Issues in Hindi : सामाजिक बुराईयों पर सटीक व्यंगात्मक कविता

मैं अनपढ़ हूँ, अच्छा हूँ;
मुझे बातें बनानी नहीं आती।
मैं देखता हूँ, दुनिया को;
मुझे झूठी दुनिया बनानी नहीं आती।
कम बोलता हूँ, सच बोलता हूँ;
मुझे अफवाह फैलानी नहीं आती।

अच्छा है, मैं अनपढ़ हूँ;
मुझे धोखाधड़ी नहीं आती।
कमा लेता हूँ, मैं मेहनत से;
मुझे कागजी चोरी नहीं आती।
हुनर तो सीख लेता हूँ;
पर जालसाजी नहीं आती।

अच्छा है, मैं अनपढ़ हूँ;
मुझे ये खबरें समझ नहीं आती।
समझता हूँ, मैं दर्द सीने का;
उस पर राजनीति करनी नहीं आती।

समझता हूँ, देश के खतरों को;
इसलिए जवान की इज्जत करनी आती है।
शराफत ही अमानत है;
उसमें मेरी गरीबी आड़े नहीं आती।
समझ थोड़ी सी कम होगी;
पर शराफत नहीं जाती।

अच्छा है, मैं अनपढ़ हूँ;
मुझे देश से गद्दारी नहीं आती

Related Hindi Poem on Social Issues:


Poem  No.14 - अद्भुत वर्षा


बहुत दूर से चाँदी के सिक्कों के खनकने की आवाज आ रही थी।
शाम मदहोश थी और अपने आगोश में डूबती जा रही थी।
राह में एक हंसो का जोड़ा प्रेमरस में गोते खा रहा था।

नाचती डोलती वर्षा की फुहारे प्रकृति का स्पर्श करते हुए धरा  पर आ रही थी।
मेघ पहली बार तो इस तरह तो नहीं बरसे थे,
फिर ये युगल क्यों इतना प्यासा नजर आ रहा था।
यूँ तो बारिश की बूंदें सबको भीगो रही थी,
पर इनके लिए खुशियों के हसीन पल संजो रही थी।
सब परेशा अपने घरोन्दो को जाने को थे,
पर ये तो मदमस्त अपने ख्वाबों में थे।

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हम ये नजारा अपने आशियाने से देख भर खुश थे,
तब ये उस पल को जिंदा दिली से जी रहे थे।
बारिश तेज हुई और भावनाओं का सैलाब ले आयी,
न रोक सके ये खुद को, और बढ चले प्रेम पथ पर आगे।
प्रकृति का वो दृश्य शान्त था, और झुक कर लताएं मुस्करा रही थी।
तब एक मस्त पवन का झौंका आया प्रेम पराग को फैलाने,
बहुत दूर-दूर तक ये बात गयी है, चर्चा होगी हर घर में।
जब ये प्रेम पसरेगा हर घर में, तभी तो दिल से बैर मिटेगा। 

Thoughts born in mind and get an emotional touch from heart. It makes a person great or worst. A human defined by their thoughts, we can say that thoughts is a mirror image of a person. If your thought process is not clear then we can easily find that person is confused and such person can not rule the world.

All great people are great thinker too, their word always have a magic to catch attention of crowd and they can inspire to a versatile mob. 

Our thoughts can make someone happy and make them cry too, it is a cause of peace or war in the world. Thoughts of Mahatma Gandhi became a way of our freedom from British at the same time thoughts of Hitler became a cause of second world war, which we can say a cause of distortion for mass. 

That's why someone said, "World are mighty then the Sword". 

Think once before eat but think twice before speak. 

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