हमारे childhood(बचपन) की न जाने कितनी यादें होती हैं, जिनको हम हिन्दी की कविताओं में सहेजना चाहते हैं, इसी श्रृंखला में ये बचपन की हसीन यादों पर लिखी यह कविता आपको जरूर पसंद आयेगी।
हिन्दी कविता - बचपन की हसीन यादें
वो दिन कितने हसीन थे,
जब दिन खेलने को छोटे होते थे,
और रातें पढ़ने को लम्बी लगती थी।
वो दिन सच में बहुत हसीन थे,
जब क्लास लम्बी लगती थी,
और इंटरवेल छोटे पड़ जाते थे।
हम कितने खुश थे तब,
जब पन्नी में बंधा टिफिन होता था
और बैग अपना फटा होता था।
हम सच में कभी बहुत खुश थे,
टेंन्शन का तो पता ना था,
पर होमवर्क पहाड़ सा लगता था।
वो हँसी कितनी सच्ची थी,
दोस्तों से ही लड़ते थे,
फिर संग ही ठहाके लगते थे।
वो भी क्या मस्ती होती थी,
बारिश में बिन छाते के जाते थे,
बस एक ही तो था, जिससे हम सब डरते थे,
पर वो सर क्लास के बाद सबसे अच्छे लगते थे,
संग उनके मस्ती होती थी, और डंडे भी खाया करते थे।
एक दोस्त सयाना होता था,
जिसकी हर बातें सच्ची लगती थी,
जब भी कोई मसला होता,
ज्ञान वही तो देता था।
सच में वो दिन कितने अच्छे थे,
क्लास में वो भी तो संग में पढ़ती थी,
बातों में वो मेरी-तेरी होती थी,
पर संग सहज ही रहते थे।
वो दिन मुझको याद आते हैं,
जब हमको जल्दी अठरा का होना था,
हमको भी कॉलेज जाना था,
सच में वो दिन कितने अच्छे थे,
जिसको हम बचपन कहते है,
और अब इसकी यादों में खोये रहते हैं।
Hindi Poem on Childhood Memories - बचपन की यादें
वो सूरज का उगना
पहाड़ी में छिपना।
जब खेलते थे,
न दिन देखते थे,
न धूप-छांव देखते थे।
वो गुल्ली और डंडा,
मिट्टी में सनना,
ताने भी सुनते,
फिर भी ना सुधरते।
याद आती है हमको,
बचपन की हर एक कहानी।
तालाबों में जाते थे मछली पकडने,
मेंढक के बच्चों को छोटी मछली समझते।
हाथ आती थी मिट्टी,
फिर भी खुश आते थे घर को।
सुबह सजते संवरते,
तेल बालों को करते,
घर से हमेशा स्कूल जल्दी निकलते,
फिर यारों से मिलते, ठहाके लगाते।
याद आती है हमको,
बचपन की हर एक कहानी।
जब अब सोचते हैं,
यही सोचते हैं,
काश लौट जायें वहीं हम,
जहाँ यादों में हम हैं रहते।
Hindi Poem on Childhood के इस काव्य संग्रह में एक नयी कविता जोड़ रहे है। इसी काव्य संग्रह की पहली हिन्दी कविता को आपने काफी प्यार दिया वा Social Media पर शेयर भी किया। हमें पूरा भरोशा है इन पंक्तियों को भी आप वैसा ही स्नेह देगें।